नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने शक्ति का प्रयोग केवल जनता की भलाई के लिए करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा है कि निष्पक्ष रूप से कार्य करना राज्य का कर्तव्य है। शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के अगस्त 2015 के उस फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि गुड़गांव-मानेसर शहरी परिसर की अंतिम विकास योजना, 2025 के तहत ग्रुप हाउसिंग कॉलोनी के विकास के लिए लाइसेंस देने के लिए हरियाणा के अथॉरिटी द्वारा अपनाई गई ‘पहले आओ-पहले पाओ’ नीति के सिद्धांत को निष्पक्ष नहीं ठहराया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से जो निर्विवाद तथ्य सामने आए हैं वह यह है कि अक्टूबर 2010 की सार्वजनिक सूचना, मई 2011 की अंतिम विकास योजना और आवेदनों की प्राप्ति और वैधता के संबंध में नीति निर्देश में कहीं भी यह निर्धारित नहीं थी कि लाइसेंस के आवंटन की प्रक्रिया ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर होगी। हालांकि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इच्छुक पक्ष राज्य के कार्यालय में अपनाई गई इस तथाकथित ‘पहले आओ-पहले पाओ’ की तथाकथित प्रथा से अवगत थे और यही कारण था कि सार्वजनिक सूचना जारी होने से पहले ही कुछ लोगों ने अपने आवेदन जमा करने के लिए दौड़ना शुरू कर दिया। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस ए एस ओका की पीठ ने यह फैसला कुछ आवेदकों द्वारा दायर अपीलों पर दिया है। अपील दायर करने वालों में वे आवेदक भी शामिल थे जिन्हें जारी लाइसेंस को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि ‘पहले आओ-पहले पाओ’ पर आधारित राज्य की यह नीति में एक मौलिक दोष था। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जिस व्यक्ति की पहुंच सत्ता के गलियारों तक है उसे सरकारी रिकॉर्ड से जानकारी उपलब्ध हो सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि आम लोगों तक सार्वजनिक नोटिस उपलब्ध होने से पहले सत्ता तक पहुंच वाले लोग अपना आवेदन जमा कर सकते हैं, जैसा कि इस मामले में हुआ। ऐसा कर वे लोग, दावेदारी की कतार में पहले खड़े होने के हकदार हो गए। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना राज्य का गंभीर कर्तव्य है कि एक गैर-भेदभावपूर्ण तरीका अपनाया जाए।