Maharashtra: महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाए जाने के मुद्दे ने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को एक बार फिर साथ आने का मौका दे दिया है. इस मुद्दे को लेकर उद्धव और राज ठाकरे एक साथ आंदोलन करने वाले हैं. इसकी जानकारी खुद शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने दी है. संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में फिलहाल प्राइमरी स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने की बात चल रही है.
संजय राउत ने पोस्ट की तस्वीर
संजय राउत ने जो पोस्ट लिखा है उसके साथ एक तस्वीर भी लगाई है जिसमें उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि ये संकेत दोनों भाइयों के बीच बढ़ रही नजदीकियों का संकेत है और पुरानी ग्लोरी से मतलब बाला साहेब ठाकरे के शिवसेना की ओर इशारा किया गया है।
दरअसल, तीन भाषा फॉर्मूले के तहत महाराष्ट्र के स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी को लागू किया जा रहा है जिसका राज ठाकरे विरोध कर रहे हैं और अब उद्धव ठाकरे ने भी इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया है।
उद्धव और राज में क्या है विवाद?
राज शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के भतीजे हैं। एक वक्त में राज की शिवसेना में नंबर 2 की हैसियत थी। माना जाता था कि आगे चलकर राज ही पार्टी की कमान संभालेंगे। हालांकि, बालासाहेब द्वारा उद्धव को उत्तराधिकारी घोषित करने के फैसले से नाराज होकर राज ने 27 नवंबर, 2005 को शिवसेना से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी ‘महाराष्ट्र नव निर्माण सेना’ बनाई। हालिया समय में दोनों नेताओं ने साथ आने के संकेत दिए हैं
अब 20 साल बाद एक बार फिर से ठाकरे परिवार एकजुट होने जा रहा है। इसके संकेत मिलने लगे हैं। दोनों के बीच मुलाकात भी हुई है और अब हिंदी विरोध के नाम पर दोनों एकजुट भी हो रहे हैं।
ठाकरे परिवार के एकजुट होने की क्या है वजह?
महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार का दबदबा कम होता जा रहा है जिसके 20 साल बाद शायद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एकजुट हो रहे हैं क्योंकि एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से शिवसेना छीन ली। पार्टी का निशान से लेकर सांसद और विधायक भी छीन लिए। विधानसभा चुनाव में जनता ने भी एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना को ही असली शिवसेना मानी। उद्धव ठाकरे की शिवसेना UBT किसी तरह दहाई अंक तक पहुंच पाई तो वहीं, MNS की ताकत भी धीरे-धीरे कम होती गई। राज ठाकरे का दबदबा कम होने लगा। विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुल पाया जिसके बाद माना जा रहा है कि अब दोनों भाई एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं।
महायुति सरकार ने हिंदी भाषा को जबरन नहीं थोपा
इस पूरे मामले पर महाराष्ट्र के मंत्री उदय सामंत की प्रतिक्रिया भी आई है. उन्होंने दावा किया है कि राज ठाकरे तो पहले से ही अपनी रैली 5 तारीख के लिए तय कर चुके थे. यानी उद्धव ठाकरे राज ठाकरे की रैली में शामिल हो रहे हैं, इसका अर्थ तो यही है. महायुति सरकार ने कहीं भी हिंदी भाषा को जबरन नहीं थोपा है. हिंदी को “अनिवार्य”नहीं बनाया गया है. उद्धव ठाकरे जब मुख्यमंत्री थे तब ही जनवरी 2022 में डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति ने कक्षा 1 से हिंदी को “अनिवार्य” रूप से पढ़ाने की सिफारिश की थी. इस प्रस्ताव को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली राज्य कैबिनेट ने ही मंजूरी दे दी थी. तो अब उद्धव क्यों विरोध कर रहे हैं? तब उन्होंने “अनिवार्य” शब्द को मंज़ूरी क्यों दी? जबकि हिंदी हमने तो हिंदी को “अनिवार्य” भी नहीं किया है
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