तो क्या ऐसे गरीबों तक पहुंचेगी दवाईयां…

नई दिल्ली। कुछ दिनों पहले सरकार ने जीवन रक्षक दवाओं पर जिस तरह से वैट बढ़ा कर महंगा कर दिया उसके बाद मरीजों का इलाज कराना काफी कष्टकारी हो गया। अब इसमें थोड़ी सी राहत दिखाई दे रही है राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने शुगर, बीपी  सहित कई बीमारियों के इलाज में प्रयोग होने वाली करीब 15 महत्वपूर्ण दवाओं के मूल्य में संशोधन किया है। खुदरा दाम तय किए गए हैं जिससे मूल्य में कमी आई है।

हालांकि इससे कुछ दवाओं के दाम में कमी तो आएगी लेकिन अधिकतर दवाओं के मूल्य में जो बढ़ोतरी हुई है उस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। एनपीपीए ने पहले ही 800 से अधिक जीवन रक्षक दवाओं के दाम करीब 11% तक बढ़ा दिए जिसका मरीजों पर व्यापक असर पड़ा।

डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस के साथ ही जीवन रक्षक दवाओं के दाम बढ़ने से परेशानी लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस पर रोक लगाने के लिए छोटे बड़े प्रयास तो किया जा रहा है लेकिन अभी उसमें सफलता नहीं मिल पा रही है। विभिन्न संगठनों की ओर से दवाओं के दाम में कमी की मांग की जा रही है। कई बार कच्चे माल की कीमत बढ़ने पर दवा कंपनियां अपने उत्पादों की कीमत बढ़ा देती हैं लेकिन जब कच्चे माल की कीमत कम हो जाती है तो वह दामों को घटाती नहीं है। यही खास कारण है जो लगातार महंगाई में वृद्धि करता है।

इस प्वाइंट पर भी नियंत्रण करने का प्रयास होना ही चाहिए। कई बड़ी विदेशी कंपनियों पर पेटेंट और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के कारण हस्तक्षेप नहीं कर पाती और कमीशन के मोटे खेल का खामियाजा जनता को भोगना पड़ता है। इस पर भी निगरानी के लिए सरकार को एक समिति का गठन करना चाहिए। इससे काफी फर्क पड़ेगा। राष्ट्रीय औषधि मूल्य नियंत्रण प्राधिकरण को सभी दवाओं को अपने नियंत्रण में लेना चाहिए और जो कमीशन का खेल चल रहा है उस पर नियंत्रण के लिए कठिन नियम बनाना चाहिए। सरकार को गंभीरता से ऐसे नियम भी बनाने चाहिए जिससे आम लोगों तक दवा की पहुंच बनी रहे।

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