यह है हर साल हो रहे चुनावों के दुष्प्रभाव…?

नई दिल्ली। हर साल चुनाव होना देश की नियति बन चुका है। फरवरी, मार्च में पांच राज्यों के चुनाव सम्पन्न हुए और इसी साल नवंबर, दिसंबर 2022 से अगले साल के अंत दिसंबर 2023 के बीच 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके बाद 2024 में लोकसभा के आम चुनाव होना हैं।

इसके साथ ही कुछ विधानसभाओं के भी चुनाव होंगे, तो क्या लोकतंत्र का मतलब हर साल चुनाव होना ही है?  इसे लोकतंत्र की उन्नति नहीं, बल्कि लोकतंत्र की दुर्गति ही कहेंगे। जब भी चुनाव होता है, आचार संहिता लगने से विकास के कार्य ठप हो जाते हैं। एक तरह से शासन और प्रशासन का कार्य लगभग पंगु जैसा हो जाता है।

जनता के आवश्यक कार्य भी अधर में लटक जाते हैं। देश में लंबे समय से मांग की जा रही है कि लोकसभा और सभी विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाए और साथ ही साथ पंचायत चुनावों को भी कुछ आगे-पीछे करके साथ ही निबटा लिया जाए। इससे समय और जनता का पैसा दोनों बचेगा, जन-कार्यों पर भी कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा।

परन्तु सवाल यह है कि क्या ऐसा हो पायेगा और यदि होगा तो कब तक। चुनाव आयोग भी पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए स्वयं को तैयार होने की बात करता है। चुनाव सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण कदम ये है कि प्रत्येक मतदाता के लिए मतदान अनिवार्य हो इसके लिए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग दोनों को मिलकर प्रयास करने होंगे।

ताकि लोकतंत्र में मतदान शत-प्रतिशत हो और एक प्रकार से सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो। चुनाव सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण है, पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना। जब भी एक साथ चुनाव की बात होती है, विपक्षी दलों में बौखलाहट-सी पैदा हो जाती है और वह विरोध में खड़े नजर आते हैं।

भारत एक विशाल देश है और यहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और हर बार इस प्रक्रिया में जनता के मत से ही सारे फैसले होने हैं। आज स्थिति यह है कि प्रत्येक वर्ष कहीं न कहीं चुनाव का दौर चलता ही रहता है, जिससे अनावश्यक जनता का पैसा, संसाधन और समय की बर्बादी होती है। लोकतांत्रिक देश में निर्वाचन एक आवश्यक तत्व है और उस देश की खूबसूरती भी।

लेकिन समय के साथ इस चुनावी प्रक्रिया में कुछ विकृतियां भी जुड़ती जाती हैं, जिनका समय से निराकरण अनिवार्य हो जाता है। ऐसे मुद्दों पर विचार करना संसद और सरकार दोनों का दायित्व है। चुनाव आयोग भी जिम्मेदारियों के बोझ तले कुछ अतिरिक्त अधिकारों की अपेक्षा करता है, ताकि उसे बदलते समय में कुछ नया आयाम मिले।

तकनीकी के इस उन्नत दौर में कुछ और नये आयामों की प्रतिक्षा देश को भी है। केंद्र सरकार को इस विषय पर गम्भीरता से विचार करना होगा और कुछ कानूनी प्रावधान संसद से पारित कराने होंगे, ताकि देश में एक साथ चुनाव कराने की राह आसान हो सके।

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