भगवान के लिए किया गया कार्य ही है भक्ति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। भक्ति कैसे करें? जो कर रहे हो वही करना है, लेकिन जो संसार के लिए कर रहे हो, भगवान के लिए करना है। संसार के प्राणियों के लिये आसक्ति में रोते हो, उनके लिये रोना बंद करके, भगवान के लिये रोवो। संसार को बार-बार याद करते हो, भगवान को बार-बार याद करो। करना सब वही है जो हम सुबह से शाम तक करते हैं। लेकिन वही भगवान के लिये करने लग जायँ, तब वही कार्य भक्ति बन जाता है।और वही मुक्ति का साधन बन जाता है। ताला बंद करने और खोलने के लिए दो चाबी नहीं होती, एक तरफ घुमाये तो बंद, दूसरी तरफ घूमाये तो ताला खुल गया। हमारी क्रियाएं संसार के लिए होती हैं तो बंधन और भगवान की प्रसन्नता के लिए होती हैं तो मुक्ति।

भगवान की लीलाओं में बृजवासी गोप गोपियां अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनते हैं, श्रृंगार करते हैं, वह भी भक्ति है। क्योंकि उन्होंने श्रृंगार संसार को दिखाने के लिये नहीं किया। भगवान के उत्सव, उत्साह के लिए, भगवान के लिए, भगवान को रिझाने के लिए, भगवान के लिए श्रृंगार भी भक्ति है। संसार के लिए पतन का कारण है। भगवान के लिए कुछ भी करो भक्ति है। भगवान से दुश्मनी भी कर लो, वह भी भक्ति बन जाती है। लेकिन उसे राजस भक्ति कहते हैं। ।।बैर भाव मोहि सुमिरत निसिचर।। वाके हृदय बस जानकी, जानकी उर मम बास है। शिशुपाल भगवान को कठोर बोल रहा है, वही उसके लिए भक्ति बन गई। यही सिद्धांत भी है। भगवान के लिए कुछ भी करो, भक्ति बन जायेगी। संसार के लिये अच्छा भी करोगे कहीं न कहीं बंधन का कारण बन जायेगा। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि-कल की कथा में महारास, कंस का उद्धार एवं भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी जी के विवाह की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग,
गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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