हमें विवेक से जीना चाहिये जीवन: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ कथा एकादश दिवसीय महामहोत्सव (नवम्-दिवस) भगवान् श्री कृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाहों का रहस्य- 1-श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में कथा है- भगवान नर नारायण बद्रीनाथ में तप कर रहे थे, इंद्र भयभीत हो गये, कहीं हमारा सिंहासन न ले लें। कामदेव के साथ अप्सराओं को तप भंग करने के लिये भेजा। गंधर्वों ने बाजे बजाये, अप्सराओं ने नृत्य किया, लेकिन नर नारायण भगवान का तप भंग नहीं हुआ। कैसे होता, भगवान अगर किसी की रक्षा कर रहे हों तो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, नर-नारायण तो स्वयं ही भगवान है। भगवान नर- नारायण ने उर्वशी नाम की अप्सरा को प्रकट किया और अप्सराओं से कहा कि ये हमने दिव्य अप्सरा प्रकट किया है, इसे भी तुम अपने साथ स्वर्ग ले जाव और इंद्र से कहना कि तप करने वाले, ईश्वर की आराधना करने वालों के तप में व्यवधान न किया करें, क्योंकि जिसके जीवन में आध्यात्मिक चेतना है वे भौतिक पद प्रतिष्ठा का कोई महत्व नहीं देते। भगवान् नर नारायण ने उन अप्सराओं से कहा- आप लोगों को कोई वरदान हमसे मांगना हो तो मांग लो। अप्सराओं ने कहा अगर ऐसी बात है तो- हम आपसे बहुत ज्यादा प्रभावित हो गये हैं। आप हमसे विवाह करो, भगवान् नर नारायण ने मना किया, अभी हमारा अवतार तपस्वी का है। ये वरदान मैं कृष्णावतार में पूरा करूंगा।
उन अप्सराओं की संख्या सोलह हजार एक सौ आठ थी। उन्हीं अप्सराओं ने द्वापर में अलग-अलग राजाओं के यहां कन्या के रूप में जन्म लेकर, भगवान् के साथ विवाह करके, अपने उस वरदान को प्राप्त किया। 2- दूसरी कथा विष्णु पुराण में है। जैसे भगवान विष्णु” अनेक रुप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे”। भगवान के अनंत रूप हैं ऐसे माता लक्ष्मी जी सब जगह विद्यमान है। द्वापर में भगवती लक्ष्मी ने सोलह हजार एक सौ आठ राजाओं के यहां कन्या के रूप में जन्म लेकर भगवान् से विवाह रचाया और एक विशाल गृहस्थ आश्रम का दर्शन कराया। हमारा बड़ा परिवार अशांति का कारण नहीं है,अशांति का कारण हमारी कुमति है। 3- आध्यात्मिक दृष्टि- वेदों में एक  लाख मंत्र हैं। जिसमें अस्सी हजार मंत्र कर्मकांड के,सोलह हजार मंत्र उपासना कांड के एवं चार हजार मंत्र ज्ञानकांड के हैं। वही सोलह हजार मंत्र उपासनाकांड के भगवान का गुणगान गाते हुए, भगवान की समीप्ता का अनुभव करने के लिये द्वापर में सोलह हजार राज कन्याओं के रूप में प्रगट हुए, अपने यहां उपनिषदों की संख्या बहुत अधिक है लेकिन सौ उपनिषद ऐसे हैं जो भगवान की तरफ जीव को प्रेरित करते हैं। वह उपनिषद भी द्वापर में राज कन्या के रूप में अवतरित हुए और अष्टधा प्रकृति। भूमि रापो नलो वायु खं मनो बुद्धि रेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृति रष्टधा।।अष्ट प्रकृति द्वापर में राजकन्या के रूप में अवतार लेकर भगवान् का समीप्ता से अनुभव करने के लिए द्वापर में श्री कृष्ण से विवाह करके विशाल भक्ति उपासना का दर्शन कराया। श्रीकृष्ण साक्षात् नारायण हैं, रुक्मिणी देवी साक्षात लक्ष्मी हैं, भीष्मक समुद्र के स्वरूप हैं और रुक्मी विष है। जिसने भगवान् के विवाह में व्यवधान पहुंचाया। संसार में अच्छा बुरा सब कुछ है, हमें विवेक से जीवन जीना चाहिये, अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए और बुराई से बचना चाहिए। ये उत्तम विवेक सत्संग से प्राप्त होता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर

जिला-अजमेर (राजस्थान)।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *