संसार में प्रत्येक जीव होना चाहता है सुखी: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जीव का स्वरूप इस संसार में प्रत्येक जीव सुखी होना चाहता है। सुख के प्रति आकर्षण उसकी सहजता है। सहजता उसे कहते हैं, जिसके लिए प्रयत्न न करना पड़े। बल्कि घटना स्वतः घटित हो जाय। जैसे पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए यंत्र की आवश्यकता होगी, परंतु नीचे की तरफ वह अपने आप बह चलेगा। क्योंकि निचाई में वहना उसकी सहजता है। ठीक उसी तरह से सुख के प्रति लगाव जीव की सहजता है। हमारे धर्म शास्त्रों में जीव को ईश्वर का अंश कहा गया है, ईश्वर अंश जीव अविनाशी। चेतन अमल सहज सुखरासी। यह जीव ईश्वर का अंश है, अतः स्वाभाविक ही उसके गुण जीव में हैं। एक बात याद रखियेगा, जीव ईश्वर के गुणों वाला है, न कि ईश्वर जैसी शक्ति वाला है। जैसे समुद्र में से एक लोटा जल ले लेवें, तो समुद्र के जल में जो गुण है, अर्थात् खारापन है, वह लोटा के जल में भी है। परन्तु समुद्र के जल में बड़े-बड़े जहाजों, जीव- जन्तुओं को अपने उदर में समा लेने की जो शक्ति है वह लोटा जल में कभी भी सम्भव नहीं है। जौ अस हिसिका करै नर जड़- विवेक अभिमान। परहिं नरक महुँ कल्प भरि जीव की ईश समान। प्रत्येक जीव अनादिकाल से सुख की तलाश में है, पर उसे यह पता नहीं है कि वह सुख कहां है। संसार में सुख का आभास है, सुख नहीं है। अर्थात् सुख दिखाई पड़ता है, लेकिन होता नहीं है। संसार का कोई भी पद पदार्थ प्राप्त होने से पहले सुखदाई प्रतीत होता है, प्राप्त होने के बाद दुःखदाई बन जाता है। संसार का प्रत्येक सुख दुःख से आवृत है और उसका परिणाम भी दुःख ही है। तो प्रश्न उठता है, सुख कहां है? धर्म शास्त्र कहते हैं वास्तविक सुख परमात्मा के चिंतन में है। जो आनंद सिंधु सुखरासी, सीकर ते त्रैलोक सुपासी। सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक विश्रामा।। संसार में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, सुख की तलाश सदैव ईश्वर के ध्यान उपासना में ही करना चाहिये। जो वस्तु जहां है वही मिलेगी। कर्तव्य पालन एवं ईश्वर की आराधना में अगर सुख मिलने लगा तो मानव जीवन सफल हो गया। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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