Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। आप भला तो जग भला। दूसरा तो दर्पण होता है। दूसरे को हम जब बुरा कहते हैं, तब वह आईना बन जाता है। इस आईने के अंदर हमें हमारा ही प्रतिबिम्ब देखने को मिलेगा। किसी को जब हम बुरा कहते हैं, तब सोचना चाहिए कि हम अपना ही प्रतिबिम्ब देख रहे हैं। इसमें हमारी बुराइयां ही प्रतिबिंबित दिखाई देती हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा मिला नहिं कोई।
अंतर खोजा आपना मुझसे बुरा न कोई।।
स्वदोष दर्शन करना चाहिए। दूसरों के छिद्रों का अन्वेषण कभी नहीं करना चाहिए। जीवन विकास की यह पहली शर्त है। भागवत की कथा दर्पण है। उसमें हमें अपने स्वदोष दर्शन होंगे। इस त्रुटि को दूर करने के प्रयत्न करेंगे तो निर्दोष बनेंगे, निर्मल बनेंगे और भगवान को प्रिय होंगे।
कई लोग कहते हैं कि मेरा मन पूजा में नहीं लगता, माला में नहीं लगता तो माला जपकर मैं क्या करूं? संत कहते हैं मन लगे, न लगे तो भी माला करो।
भायं कुभायं अनख आलस हूं। नाम जपत मंगल दिसि दसहूं ।।
तुलसी सीता राम को रीझ भजो के खीज।
उलटा सुलटा बाबीये ज्यूं खेतन में बीज।।
मन नहीं लगता है तो भी माला, पूजा-पाठ और कल्याण के साधन करते रहना चाहिये। आहिस्ता आहिस्ता मन लग ही जायेगा। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).