राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान शंकर की पूजा में पंचोपचार पूजा, षोडशोपचार पूजा और महा उपचार पूजा का विधान है। भगवान शंकर की पूजा बहुत आसान भी है, केवल जल चढ़ाने से शिव प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की पूजा बहुत विशाल भी है, रुद्री पाठ के माध्यम से बड़े-बड़े आचार्य बहुत लम्बे समय तक पूजा विधान करवाते। शिवजी की पूजा में सब शीतल बस्तु ही चढ़ाया जाता है। बेलपत्र चढ़ाया जाता है, वह भी शीतल होता है, जल, चंदन, कमल का पुष्प, चावल सब शीतल ही चढ़ाया जाता है। जो भगवान शंकर पर जल चढ़ाते हैं अथवा अखंड धारा या निरंतर शिव पिंडी पर जल की व्यवस्था करते हैं, उनके जीवन में भगवान शान्ति प्रदान करते हैं। आज लोगों को एक ही परेशानी है- लोग कहते हैं भगवान का दिया सब कुछ है, एक शांति नहीं है। जिसे जीवन में शांति चाहिए शिव की आराधना करें।
बिल्व वृक्ष की उत्पत्ति महालक्ष्मी से बताई गई है। बिल्व पत्र भगवान शंकर पर चढ़ाने से लक्ष्मी का अथाह भंडार भी प्राप्त होता है। एक विल्व पत्र चढ़ाने से करोड़ों कन्याओं का विवाह करवाने, सैकड़ों अश्वमेध यज्ञ करवाने का फल प्राप्त होता है। अक्षत अर्थात् चावल चढ़ाने से अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। चंदन चढ़ाने से जीवन सुभाषित बनता है, जल चढ़ाने से शांति मिलती है, बिल्वपत्र चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है और शिव की आराधना करने से सभी देवताओं की प्रसन्नता, लोक, परलोक सब तरह से मंगल होता है। शिव भोला भंडारी, भंडारी का अर्थ होता है- भगवान के भंडार में सब कुछ है, आराधना करने वाले को सब कुछ मिल जाता है ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, मुक्ति, लोक परलोक सब श्रेष्ठ बनता है। इसलिए भगवान शंकर की आराधना करते रहना चाहिए। छोटीकाशी बूँदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धा-आश्रम) का पावन स्थल, तीर्थ गुरु पुष्कर से पधारे महाराज श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चातुर्मास के अवसर पर चल रहे श्रीशिव-महापुराण के तृतीय दिवस कथा का वाचन किया गया, चतुर्थ दिवस की कथा में शिव प्राकट्य की कथा का वर्णन किया जाएगा।।