Solar Missions: दुनिया के मिशनों से कितना अलग है भारत का आदित्य-एल1? जानें सब कुछ

Aditya L1: चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत ने 2 सितंबर यानी आज सूर्य मिशन आदित्य-एल1 को लॉन्च किया है।  इसे लैंग्रेजियन बिंदु 1 (एल1) पर भेजा जाना है। पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस बिंदु तक मिशन को पहुंचने में लगभग 125 दिन यानी चार महीने का वक्त लगेगा।

आदित्य-एल1 भारत का पहला जबकि दुनिया का 23 वां सौर मिशन है। हालांकि, यह अन्य वैश्विक मिशनों से काफी अलग है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आदित्य एल-1 क्या है? इसके अलावा दुनिया के दूसरे सौर मिशन क्या हैं? आदित्य-एल1 अन्य मिशनों से किन मायनों में अलग है?

आखिर आदित्य-एल1 क्या है?
आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है।

आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

इसके अलावा दुनिया के दूसरे सौर मिशन क्या हैं
अमेरिका: नासा ने अगस्त 2018 में पार्कर सोलर प्रोब लॉन्च किया। दिसंबर 2021 में, पार्कर ने सूर्य के ऊपरी वायुमंडल, कोरोना से उड़ान भरी और वहां कणों और चुंबकीय क्षेत्रों का नमूना लिया। नासा ने दावा किया कि यह पहली बार था जब किसी अंतरिक्ष यान ने सूर्य को छुआ।

फरवरी 2020 में नासा ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के साथ मिलकर सोलर ऑर्बिटर लॉन्च किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि सूर्य ने पूरे सौर मंडल में लगातार बदलते अंतरिक्ष वातावरण को कैसे बनाया और नियंत्रित किया।

जापान: जापान की जापान एयरोस्पेस एक्स्प्लोरेशन एजेंसी (JAXA) ने 1981 में अपना पहला सौर अवलोकन उपग्रह, हिनोटोरी (ASTRO-A) लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य कठोर एक्स-रे का उपयोग करके सौर ज्वालाओं का अध्ययन करना था। JAXA के अन्य सौर मिशनों की बात करें तो, 1991 में लॉन्च किया गया योहकोह (SOLAR-A) है, 1995 में एसओएचओ (नासा और ईएसए के साथ) और 1998 में NASA के साथ ट्रांजिएंट रीजन और कोरोनल एक्सप्लोरर (TRACE)।

2006 में हिनोड (SOLAR-B) मिशन लॉन्च किया गया था, जो परिक्रमा करने वाली सौर वेधशाला योहकोह (SOLAR-A) का अगला चरण था। जापान ने इसे अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर लॉन्च किया था। वेधशाला उपग्रह हिनोड का उद्देश्य पृथ्वी पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना है।

यूरोप: अक्‍टूबर 1990 में, ईएसए ने सूर्य के ध्रुवों के ऊपर और नीचे अंतरिक्ष के वातावरण का अध्ययन करने के लिए यूलिसिस लॉन्च किया था। NASA और JAXA के सहयोग से लॉन्च किए गए सौर मिशनों के अलावा, ESA ने अक्‍टूबर 2001 में Proba-2 लॉन्च किया था। प्रोबा-2, प्रोबा श्रृंखला का दूसरा मिशन है। प्रोबा-2 पर चार प्रयोग थे, जिनमें से दो सौर अवलोकन प्रयोग थे। ईएसए के आगामी सौर मिशन प्रोबा-3 और स्माइल हैं जिन्हे क्रमशः 2024 और 2025 में लॉन्च किया जाएगा।

चीन: उन्नत अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला (एएसओ-एस) को आठ अक्‍टूबर 2022 को राष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र, चीनी विज्ञान अकादमी (सीएएस) द्वारा लॉन्च किया गया था।

आदित्य-एल1 दुनिया के मिशनों से कितना अलग?
आदित्य-एल1 को एल1 बिंदु के आसपास रखा जाएगा, जो अंतरिक्ष में एक विशेष बिंदु है जो न केवल सौर वेधशाला को एक निश्चित स्थिति में रहकर ईंधन बचाएगा और ऊर्जा संरक्षित करेगा, बल्कि अंतरिक्ष यान को सूर्य का स्पष्ट दृश्य भी प्रदान करेगा।

एल1 की ओर आदित्य-एल1 का प्रक्षेप पथ यानी ट्रेजेक्टरी भी अनोखी होगी। श्रीहरिकोटा से लॉन्च होने के बाद, आदित्य-एल1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद कक्षा को अधिक अण्डाकार बनाया जाएगा और फिर प्रणोदन के जरिए अंतरिक्ष यान को एल1 बिंदु की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा।

जैसे ही अंतरिक्ष यान एल1 की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा। यहां से बाहर निकलने के बाद क्रूज चरण (यान को नीचे उतारने वाला चरण) शुरू होगा और बाद में अंतरिक्ष यान को एल1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा। एजेंसी की मानें तो, लॉन्च से एल1 तक के पूरे सफर में आदित्य-एल1 को लगभग चार महीने लगेंगे।

आदित्य-एल1 पहला अंतरिक्ष यान है जो सूरज से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के नजदीकी बैंड में सौर डिस्क को वहीं से विघटित यानी अलग करेगा। दरअसल, सौर डिस्क सूर्य की गोलाकार सतह होती है जिसे हम देख पाते हैं।

मिशन सौर डिस्क के करीब कोरोनल मास इजेक्शन की गतिशीलता का भी अध्ययन करेगा। सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं, उन्हें ही कोरोनल मास इजेक्शन कहा जाता है।

आदित्य-एल1 में इंटेलिजेंस डिवाइस पहले से ही लगी है जो अंतरिक्ष यान को कोरोनल मास इजेक्शन और सौर ज्वालाओं का पता लगाने में सक्षम बनाता है। आदित्य-एल1 का उद्देश्य सूर्य की पूरी सतह को खंगालने का है। अंतरिक्ष यान एक विशाल क्षेत्र का अध्ययन करेगा जहां तापमान में काफी भिन्नता हो सकती है।

 

 

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