साधक को अपनी साधना की तरफ ही रखना चाहिए ध्यान: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। श्रीविमलानंदजी प्रबोध के कुल में श्रीसंतदासजी वैष्णव धर्म की सीमा हुए। भगवान श्रीगोपीनाथजी के चरणों में आपका अत्यन्त अनुराग था। आप इन्हें नित्य छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाकर भोग लगाते थे।श्रीपृथुजी की पूजा-पद्धति के अनुसार आप प्रिया-प्रियतम श्रीराधाकृष्ण की सेवा करते थे। भक्त और भगवान दोनों को समान मानकर आपने उसका सुयश वर्णन किया और इन्हीं का बल रखते थे। आप की कविताएं श्रीसूरदासजी से मिलती-जुलती हैं, उनमें कुछ भी अंतर नहीं प्रतीत होता। भगवान के जन्म, कर्म और उनकी लीलाओं का आपने बड़ी चतुरता के साथ वर्णन किया है। आप अनन्य भक्ति के गुप्त रहस्य एवं भेदों को अच्छी प्रकार से जानते थे। सत्संग के अमृतबिंदु- बात यह होती है कि साधक जब मन को निर्विषय करना चाहता है, तब संसार के नित्य अभ्यस्त विषयों से मन को फुर्सत मिल जाती है, उधर परमात्मा में लगने का इस समय तक उसे पूरा अभ्यास नहीं होता। इसलिये फुर्सत पाते ही वह उन पुराने दृश्यों को सिनेमा के फिल्म की भांति क्षण-क्षण में एक के बाद एक उलटने लग जाता है। इसी से उस समय ऐसे संकल्प मन में उठते हुए मालूम होते हैं जो संसार का काम करते समय याद भी नहीं आते थे। मन की ऐसी प्रबलता देखकर साधक स्तंभित सा रह जाता है, पर कोई चिंता नहीं। जब अभ्यास का बल बढ़ेगा तब उसको संसार से फुर्सत मिलते ही तुरंत परमात्मा के ध्यान से हटाए जाने पर भी न हटेगा। इसलिए साधक को अपनी साधना की तरफ ही ध्यान रखना चाहिए। विचलित नहीं होना चाहिए, समय लग सकता है लेकिन सफलता अवश्य मिलती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि-कल की कथा में भक्त शिरोमणि- भक्तिमति श्रीरत्नावतीजी की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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