बहुत भारी होती है मानसिक पापों की सजा: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कथा का प्रसंग-चित्तौड़गढ़ के भक्त श्रीभुवनसिंह जी की कथा एवं नरनारायण अवतार की झांकी एवं उत्सव-महोत्सव। भक्तशिरोमणि श्रीभुवनसिंहजी

सतयुग, त्रेता और द्वापर में भक्तों की वाणी को भगवान ने जिस प्रकार सत्य किया, वह कथायें पुराणों में लिखी हैं और लोक में प्रसिद्ध है। यहाँ अब कलिकाल की कथायें सुनिये। जहाँ उदयपुर के राणा का राज्य था। वहां भुवन सिंह जी चौहान नाम के एक भक्त रहते थे। इन्हें खाने-खर्चे के लिए राणा ने दो लाख रूपये वार्षिक आय वाली धरती का पट्टा दे रखा था। उसकी आयसे ये खूब अच्छी संत सेवा करते थे। एक बार राणा साहब शिकार खेलने के लिए वन को गये, उनके साथ सैनिक, मंत्री और नौकरों की भीड़ गई और भुवन सिंह जी भी गये। वहां राणा साहब ने एक हिरणी के पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया पर वे उसे मार न सके। शिकार हाथ से जाता देखकर भुवन सिंह जी ने अपना घोड़ा बढ़ाया और तलवार से हिरणी के टूक कर दीये। यह गर्भिणी थी। बच्चे समेत उसे तड़पते मरते देखकर इनके मन में बड़ी दया आयी, यह मन में पछताने लगे कि-मैंने इसे मारने का पाप क्यों किया? लोग मुझे भक्त कहते हैं, परंतु मैं तो अभक्त दुष्टों-सा कर्म करता हूं। भविष्य में चाहूं भी तो इस प्रकार के अनाथ जीवों की व्यर्थ हत्या न कर सकूं। इसलिए मुझे अब उचित है कि- मैं अब काठ की तलवार धारण करूं। ऐसा विचार उनके मन में आया और उन्होंने लोहे की हटाकर लकड़ी की तलवार म्यान में रख ली।

सत्संग के अमृतबिंदु- जीभ से अधिक पाप करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में गूंगा होता है। जो हिसाब में घोटाला करता है, वही घबराता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसके हाथों पाप नहीं हुए हों, लेकिन पाप करने के बाद जो पछतावा नहीं करता, वह मनुष्य नहीं। पाप करना बड़ा गुनाह नहीं, किंतु पाप कबूल न करना, किए गए पापों के लिए पश्चाताप न करना सबसे बड़ा गुनाह है। पुण्य गुप्त रखो,पाप जाहिर करो। जिसके पाप जाहिर होते हैं, वही निष्पाप बनता है। जिसके पाप जाहिर नहीं होते, वह चाहे जेल में न जाए पर परिणाम बहुत दुःखदायी होता है। जो पाप छिपाता है, उसे पाप छोड़ता नहीं, वरन उसके मन में घर किए रहता है। पापी के जीवन में से शांति छीन ली जाती है।

पैसे के लिए चाहे जितने पाप करना और फिर थोड़ा सा ठाकुर जी को भोग धराने एवं आरती उतारने के बाद यह समझना कि मेरे सब पाप जल गये हैं, यह भ्रम है। पाप की कमाई में से किये गये दान को प्रभु पसंद नहीं करते। मानसिक पापों की सजा बहुत भारी होती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल की कथा में भक्तिमति-

श्रीकर्माबाईजी की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *