स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की जयंती पर पीएम मोदी व गृह मंत्री ने दी श्रद्धांजलि, कहा-‘राष्ट्र उनके साहस और संघर्ष को कभी नहीं भूल सकता’

VD Savarka: भारत के स्वतंत्रता सेनानी और हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी। महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले वीर सावरकर ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी पाने के लिए क्रांतिकारी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। इस कारण उन्हें अंग्रेजों ने काफी कठोर सजा दी थी और उन्हें अंडमान द्वीप पर कैद कर दिया था जिसे काला पानी की सजा भी कहते हैं।

पीएम मोदी ने की सराहना

वीर सावरकर की जयंती पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सावरकर के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि राष्ट्र उनके अदम्य साहस और संघर्ष को कभी नहीं भूलेगें। उन्होंने कहा कि देश के लिए सावरकर का त्याग और समर्पण एक विकसित भारत के निर्माण का मार्गदर्शन करता रहेगा।

‘X’ पोस्ट में अमित शाह ने कहा

पीएम मोदी के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी वीर सावरकर को उनकी जयंती के अवसर पर श्रद्धांजलि दी। अपनी ‘X’ पोस्ट में अमित शाह ने कहा मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए साहस और संयम की पराकाष्ठा को पार करने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी ने राष्ट्रहित को अखिल भारतीय चेतना बनाने में अविस्मरणीय योगदान दिया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को अपनी लेखनी से ऐतिहासिक बनाने वाले सावरकर जी को अंग्रेजों की कठोर यातनाएं भी डिगा नहीं सकीं। उनकी जयंती पर, कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से, हम वीर सावरकर जी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं,

वीर सावरकर की जीवनी

सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था। उन्होंने युवावस्था से ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया। सावरकर ने लंदन में ‘अभिनव भारत’ और ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ जैसे संगठनों की स्थापना की थी।  उन्होंने भारतीय युवाओं को सशस्त्र क्रांति के लिए प्रेरित किया। सावरकर का डर अंग्रेजों के मन में इसलिए भी था, क्योंकि वे केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक प्रखर विचारक भी थे। इसके चलते उन्हें 1910 में लंदन में गिरफ्तार किया गया। 1911 में उन्हें 2 आजीवन कारावास की सजा सुनाकर अंडमान की सेलुलर जेल, यानी कालापानी, भेज दिया।  का मानना था कि हालांकि, कालापानी में अंग्रेजों की अमानवीय यातनाएं सावरकर के क्रांतिकारी विचारों को दबा नहीं सकी, उन्होंने वहां भी हार नहीं मानी। सावरकर ने जेल की दीवारों पर कविताएं लिखीं, जो बाद में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा बनीं।

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