अभी बुझी नहीं उन्मींद की लौं

नई दिल्ली। भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उससे मुक्ति की आशा आम आदमी को एक सपने जैसे लगती है। लेकिन बीच-बीच में कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती है, जो उम्मींद की लौं बुझने नहीं देती है। ऐसा ही कुछ भरोसा पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री डा. विजय सिंगला की बरखास्तगी और गिरफ्तारी के बाद बरकरार हुआ है। पंजाब की सरहद से बाहर यह मसला पूरे देश और दुनिया में जबरदस्त सुर्खियों में है।

लोग आश्चर्य, अविश्वास के साथ बहुत बड़े नैतिक कदम के रूप में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की कमर पर प्रहार भी मान रहे हैं। फिलहाल पंजाब में लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है और तो और सत्ताधारी दल के लोग, नुमाइन्दें और नौकरशाह बुरी तरह डरे हुए हैं। विरोधियों की भी हालत पतली हो गई है। अब देखना यही है कि तमाम राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब-किताब से हट कर  उठाया गया यह दुस्साहसी कदम 2022 का अकेला उदाहरण बनकर रह जाता है या आगे भी भ्रष्टाचार में गले तक डूबे तक सिस्टम पर जारी रहेगा। पंजाब की नयी-नयी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को महज 62 दिनों में ही एक झटके में भ्रष्टाचार के सुबूतों के बिना पर बरखास्त कर गिरफ्तार करवा देना कोई आसान काम नहीं था। बड़ी इच्छा शक्ति और जबरदस्त कशमकश के बाद काफी सोच, समझकर लिया गया फैसला होगा। लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि देश में शासन-प्रशासन में सुधार और राहत को लेकर आमजन की अभी उम्मीदों की लौं बुझी नहीं है।

भारत में भ्रष्टाचार का दीमक स्वतंत्रता के बाद से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में घुन की तरह घुस गया। इसको लाख उपचार के बाद भी नहीं खत्म किया जा सका। संसद का एक महत्वपूर्ण वाकया आज भी प्रासंगिक है जब 21 दिसंबर 1963 को डा. राममनोहर लोहिया ने कहा था कि सिंहासन और व्यापार के बीच का संबंध भारत में जितना भ्रष्ट और दूषित हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ। इसकी जड़ों को लेकर डा. लोहिया की उस समय की पीड़ा को 59 सालों के बाद आज भी समझा जा सकता है। इसकी कल्पना मात्र से ही सिरहन हो उठती है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के इस दुस्साहस को राजनीतिक रूप से भले ही कुछ भी समझा जाय लेकिन पुराने कई उदाहरण देखकर लगता है कि डा. लोहिया के चिन्तन को सार्वजनिक जीवन के अमल में लाने के लिए कुछ तो हो रहा है।

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