सुख और दुःख दोनों की भावना का मिट जाना ही है सुख: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सबसे बड़ा सुख क्या है? भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कंध में उद्धव जी से कहते हैं कि- सुख और दुःख दोनों की भावना का मिट जाना ही सुख है। दोनों को सम करके देखना सुख है। सुख-दुःख की भावना मन की उपज अथवा कल्पना है, इनकी अलग सत्ता नहीं है। जैसे एक कन्या का विवाह हुआ। विदाई के समय माता-पिता रो रहे हैं और उसके ससुराल पक्ष के लोग नववधू के आगमन की खुशी मना रहे हैं। एक ही वस्तु में सुख, दुःख दोनों कैसे हो सकते हैं। नीम कड़वी भी है और मीठी भी है। ये दोनों नीम के गुण एक साथ कैसे हो सकते हैं। वस्तु का धर्म एक है, जैसे बर्फ ठंडी है। यदि विभिन्नता देखी जा रही है तो यह देखने वाले की भावना अथवा मनः स्थिति है। विवाह वाले उदाहरण को ध्यान से देखें। जो माता-पिता रो रहे हैं उन्हें मन में संतोष है, सुख है कि उन्होंने पुत्री का विवाह करके अपने कर्तव्य की पूर्ति कर ली है। एक ही वस्तु या घटना है पर एक ही मन में ये दो प्रतिक्रियाएं स्पष्ट करती हैं कि दुःख या सुख वस्तु में नहीं अपितु मन के भाव में है। एक महान व्यक्ति जहां अपने शुभचिंतकों के लिये प्रिय है वहीं शत्रु के लिए अप्रिय है। सूर्य का प्रकाश हमारे-आपके नेत्र के लिए सुख का मूल है तो उल्लूक की आंखों के लिए दुःख का मूल है। प्रकाश में दुःख या सुख नहीं है। ये दो प्राणियों की मन की कल्पना मात्र है, सुख-दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।। साधक इस तथ्य को समझकर दोनों स्थितियों में सम रहे, तभी मन स्थिर रह पायेगा।अनुकूलता प्रतिकूलता में विचलित न हो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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