भ्रष्टाचार की गहरी पैठ…

नई दिल्ली। देश में भ्रष्टाचार की चेन हर क्षेत्र में गहरे तक घुसपैठ बना चुका है। कहीं न कहीं तमाम विभागों में एक टाईअप जैसे काम करता है। नेता और नौकरशाह इतने बेखौफ हो गये हैं कि उन्हें न लाज है, न भय। अर्थव्यवस्था और हर एक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव डालने वाला रिवाज जो बन गया है। राजनीति, नौकरशाही में अनगिनत उदाहरण हैं लेकिन न्यायपालिका, मीडिया, सेना, पुलिस भी अछूती नहीं है।

हैरानी की बात तो यह है कि तमाम तकनीकी संसाधनों, मुखबिरों, ठोस सुबूतों और दावों-प्रतिदावों के बीच भी भ्रष्टाचार तेजी से फल-फूल रहा है। विडंबना, मजबूरी या जो भी कुछ कहें, पूरी तरह गैर-कानूनी होने के बाद भी रोजाना के चलन में बेखौफ जारी है। शायद ही कोई ऐसा हो जो इससे न गुजरा हो। भारतीय इतिहास में दूसरी बार हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री ने सीधे अपने मंत्री पर कार्रवाई की। इससे पहले साल 2015 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अपने एक मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोपों में हटा चुके हैं, उन्होंने खाद्य आपूर्ति मंत्री आसिम अहमद खान को बरखास्त कर सीबीआई जांच तक करवा दी। उन पर छह लाख रुपयों की घूस का आरोप था। अपनी जीरो टॉलरेन्स पार्टी का हवाला देकर सितम्बर 2016 में भी केजरीवाल ने महिला एवं बाल विकास मंत्री संदीप कुमार को एक कथित आपत्तिजनक सीडी उजागर होने के बाद बरखास्त किया था। भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी यानी एंटी करप्शन वॉचडॉग की रिपोर्ट-2021 में भारत दुनिया में 180 भ्रष्टों की सूची में जरूर 86 से खिसक 85 पर आ गया और 40 अंकों के साथ 85 वां स्थान मिला। कहने की जरूरत नहीं कि माजरा क्या है। काश पूरे देश में भ्रष्टाचार की कमर तोड़ने की बातें सिर्फ भाषणों और किताबों में नैतिकता के रूप में बतायी और दिखायी न जाकर धरातल पर उतरतीं।

पंजाब के मंत्री डा. विजय सिंगला ने 23 मार्च को कहा था कि वे भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे और करप्शन पर जीरो टॉलरेंस का दावा भी ठोंका। लेकिन ठीक 62 दिन बाद 24  मई को भ्रष्टाचार के मामले में धर लिये गये। तमाम आंकड़ों और सबूतों के बावजूद हर सांस में भ्रष्टाचार की बदबू को स्वीकार करने की मजबूरी रिवाज बन गयी है। ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से लेकर दरवाजे पर बैठा चपरासी तक कहीं न कहीं इस कड़ी का हिस्सा होता है। चाहे सरकारी राशन दूकानें हो,  खनन, परिवहन, सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य, बीपीएल कार्ड, विभिन्न योजनांतर्गत आवास, समाज कल्याण, धर्मार्थ कार्य, कफन- दफन का मसला हो या कोई भी सरकारी योजना। शायद ही कोई ऐसा विभाग अछूता हो जहां भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों का साया न हो। आज माफिया शब्द भ्रष्टाचार का पर्यायवाची बन गया है। इस पर रोक लगाने के लिए सभी को जिम्मेदार बनना पड़ेगा।

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