चौबीस अवतारों की कथा ही है श्रीमद् भागवत कथा: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य एवं श्रेष्ठ व्यवस्था में सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय, समस्त भक्तों के स्नेह और सहयोग से श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ कथा-श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ कथा 4-12-2021 से 10-12- 2021 तक। कथा का समय-दोपहर 12:15 से 4:15 तक। कथा स्थल- वृंदा होटल बिजासण माता मंदिर के पास केकड़ी (अजमेर) श्रीमद् भागवत सप्ताह कथा वक्ता-राष्ट्रीय संत श्री-श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने द्वितीय दिवस की कथा में भगवान नारायण के 24 अवतारों का स्मरण किया। सनकादिक अवतार, वराह अवतार, नारद अवतार, नर-नारायण अवतार, कपिल अवतार, दत्तात्रेय अवतार, यज्ञ अवतार, ऋषभ अवतार, पृथु अवतार, मत्स्य अवतार, कच्छप अवतार, धनवंतरी अवतार, मोहिनी अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, वेदव्यास अवतार, श्री राम अवतार, बलराम अवतार, श्री कृष्ण अवतार, हरिअवतार, हंस अवतार, बुद्ध अवतार और कल्कि अवतार। और बताया कि-चौबीस अवतारों की वृहद कथा ही श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा है। महर्षि पराशर एवं सत्यवती के यहां भगवान व्यास का प्रादुर्भाव, देवर्षि नारद की प्रेरणा से श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना, कुन्ती स्तुति, भीष्म स्तुति, परीक्षित जन्म, पांडवों का स्वर्गारोहण, परीक्षित द्वारा कलयुग का निग्रह, परीक्षित की सभा में श्री शुकदेव जी का आगमन, चतुःश्लोकी भागवत एवं विदुर चरित्र की कथा का गान किया गया। द्वितीय दिवस की कथा के अमृत बिंदु-हरि भजन बिना सुख शांति नहीं। चाहे धर्म हो, चाहे पूजा हो, चाहे प्रवचन हो, चाहे कथा श्रवण हो, सत्संग हो। यह सब अपने स्व में स्थित होने के साधन है। जब हम किसी से सद्भाव करते हैं, तो अपने स्वरूप में स्थिर होते हैं। नफरत करते हैं तो अपने स्वरूप से दूर होते हैं। ईश्वर ने हृदय दिया है, सबके प्रति सद्भाव करने के लिये। चौबीस घंटे प्रेम से हरे भरे रहो। ऐसा करना असंभव नहीं है। चौबीस घंटे नफरत करना संभव ही नहीं है। चौबीस घंटे क्रोध करना संभव नहीं है। चौबीस घंटे शांत रहना संभव है। चौबीस घंटे प्राणी मात्र के प्रति सद्भाव स्नेह करना संभव है। प्रेम व्यापक हो जाये, अनंत हो जाये, सर्व के लिए हो जाये, प्राणी मात्र के लिए हो जाय तो संतत्व को प्राप्त करते हैं। क्रोध कोई हमारा स्वरूप नहीं है। नफरत हमारा स्वरूप नहीं है। स्वरूप में स्थिर होते हैं, जब हम स्नेह भाव में भरे होते हैं। स्व से दूर चले जाते हैं, जब हम क्रोध करते हैं, इसीलिये काम, क्रोध, लोभ, मद, मत्सर आदि को शत्रु कहा गया है। शरीर को क्षेत्र कहां है, धर्म क्षेत्र कहा है, यह शरीर धर्म करने के लिये मिला है। धर्माचरण करने के लिये यह क्षेत्र मिला है। चौरासी लक्षयोनियों में भटकते-भटकते धर्म की ओर आगे बढ़ना चाहिये। इसीलिए वालि ने भगवान श्री राम के पास मुक्ति नहीं मांगा है, जो शरीर मिले, आपके चरण भक्ति के लिये मिले। अब नाथ करि करुना बिलोकहुं देहु जो वर मांगऊं, जेहि जोनि जन्मौं कर्म बस तहं राम पद अनुरागऊं। जीवन में जितना प्रेम बढ़ता चला जायेगा। जितनी चेतना, विकास की ओर बढ़ती चली जायेगी, उतने करुणा और प्रेम बढते चले जायेंगे। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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