प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सेवा सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही के लिए राज्यपाल की अनुमति लेना जरूरी है। सिविल सर्विस रेग्यूलेशन 351(ए) के अंतर्गत वित्तीय क्षति की भरपाई के लिए कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने से पहले विभागीय कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद बिना राज्यपाल से अनुमोदन लिए की गई विभागीय कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 300(ए,) के विपरीत है। यह अनुच्छेद कानूनी कार्यवाही बगैर किसी को संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा है कि रेग्यूलेशन 351(ए) के अंतर्गत विभागीय नुकसान की वसूली के लिए सेवा निवृत्त होने से पहले आरोप पत्र दे देना जरूरी है। इसके बाद शुरू की गई कार्यवाही मनमानी मानी जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी अधिकारी को अनुच्छेद 309 के तहत ही अधिकार दिये जा सकते हैं।निगम के प्रस्ताव व सर्कुलर से राज्यपाल के अधिकार प्रबंध निदेशक राज्य विद्युत निगम को नहीं दिये जा सकते। इसी के साथ कोर्ट ने बिजली विभाग में कनिष्ठ अभियंता पद से सेवानिवृत्त याची को पेंशन आदि पाने का हकदार माना और बिजली विभाग को 9फीसदी व्याज सहित सेवानिवृत्ति परिलाभो का दो माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है साथ ही कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो 6फीसदी अतिरिक्त व्याज कुल 15फीसदी व्याज का भुगतान करना होगा। कोर्ट ने पेंशन का भुगतान न कर तीन साल परेशान करने पर दो माह में याची को 25हजार रूपए हर्जाना भी देने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अनिल कुमार शर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के खिलाफ सेवानिवृत्त होने के बाद यह कहते हुए विभागीय जांच कार्यवाही शुरू की गई कि उसने व उसके भाई दोनों ने मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति प्राप्त की थी। उसके खिलाफ बिजली चोरी की भी शिकायत की गई है। मालूम हो कि याची 4जून 1974 को बिजली विभाग में पेट्रोल मैं पद पर नियुक्त किया गया।बाद में कनिष्ठ अभियंता पद पर पदोन्नति की गई। 31 दिसंबर 18 को अमरोहा बिजली विभाग सेवानिवृत्त हुआ। इससे पहले 14नवंबर18को याची के खिलाफ शिकायत की गई।22नवंबरको निलंबित कर दिया गया। सेवानिवृत्त होने से पहले 28 दिसंबर 18को निलंबन वापस ले लिया गया।