Lucknow: गरीबी व खामोशी से जूझ रही कानपुर की 20 वर्षीय खुशी गुप्ता के जीवन में बुधवार को नया सवेरा आया. अपने हाथों से बनाए चित्रों के माध्यम से सीएम योगी आदित्यनाथ तक अपना दर्द पहुंचाने की उसकी कोशिश रंग लाई. यह सिर्फ मुलाकात नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना की मिसाल थी. मुख्यमंत्री ने आगे बढ़कर बच्ची का दर्द समझा, उसके बनाये चित्रों को सराहा और उसके भविष्य को सुरक्षित करने का वचन भी दिया.
खुशी ने खुद बनाया चित्र भेंट किया
जब खुशी मुख्यमंत्री आवास पहुंची और अपने हाथों से बनाया हुआ योगी आदित्यनाथ का चित्र उन्हें दिया, तो मुख्यमंत्री ने उसे बेहद स्नेह से अपने पास बुलाया. उन्होंने बच्ची द्वारा बनाए चित्र, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोटो भी था ध्यान से देखा. खुशी के माता-पिता बताते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे मुख्यमंत्री से इतनी निकटता से मिल पाएंगे. यह पल उनके लिए अविस्मरणीय रहा.
सीएम ने आवास और शिक्षा की जिम्मेदारी भी उठाई
खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने पहल करते हुए खुशी और उसके परिवार को अपने सरकारी आवास पर बुलाया, जहां न केवल उसके भविष्य को संवारने का वचन दिया गया, बल्कि परिवार की आर्थिक तंगी दूर करने के लिए आवास और शिक्षा की जिम्मेदारी भी उठाई. बुधवार को कानपुर के ग्वालटोली अहरानी निवासी खुशी अपने पिता कल्लू गुप्ता, माता गीता गुप्ता और भाई जगत गुप्ता के साथ मुख्यमंत्री आवास आई थी. आर्थिक दिक्कतों से जूझ रहे इस परिवार से योगी ने स्नेहपूर्वक बात की.
खुशी ने खुद बनाया चित्र भेंट किया
कानपुर के ग्वालटोली अहरानी निवासी खुशी अपने पिता कल्लू गुप्ता, मां गीता गुप्ता और भाई जगत गुप्ता के साथ 26 नवंबर को लखनऊ पहुंचीं. परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है. पिता पहले गार्ड की नौकरी करते थे, पर अब कार्य नहीं है. मां घरों में काम कर परिवार चलाती हैं. कठिन परिस्थितियों के बावजूद खुशी में चित्रकारी की प्रतिभा और मुख्यमंत्री के प्रति सम्मान निरंतर जीवित रहा. बताते चलें कि घटना की शुरुआत 22 नवंबर को हुई थी. खुशी बिना बताए अकेली घर से निकल पड़ी. उसका उद्देश्य था अपने मुख्यमंत्री को वह चित्र देना, जिसे उसने स्वयं बनाया था.
बिना बताए घर से निकली
खुशी की कहानी दृढ़ संकल्प की है. 22 नवंबर को वह बिना बताए अपने घर से अकेली निकल पड़ी थी. उसका एकमात्र उद्देश्य मुख्यमंत्री को अपने हाथ से बनाया चित्र देना था. राजधानी पहुंचने के बाद वह रास्ता भटक गई और लोकभवन के बाहर बैठकर रोने लगी. हजरतगंज पुलिस ने उसे संभाला और उसके परिवार को सूचना दी. खुशी पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन अपने पिता का नाम और मुख्यमंत्री का नाम लिखना जानती थी.
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