Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि द्रवित हृदय- तेल से चुपड़े हुए लोहे को जंग नहीं लगता. इसी प्रकार रखे हुए आभूषणों की छीजन भी कम होती है. आपके हृदय को वासना का जंग न लगे और पापमय विकार का छीजन उत्पन्न न हो – इस हेतु हृदय को हमेशा सात्विक भावों में डुबोया हुआ रखो. हृदय द्रवित होगा तो ही पापमय विकारों का नाश होगा. हृदय द्रवित होगा तो ही प्रभु मिलन की आतुरता जागृत होगी.
सुख भोगने की वासना ही बहुत दुःख देती है. सेवा-पूजा में भूल हो तो प्रभु क्षमा प्रदान करते हैं, किन्तु व्यवहार में भूल हो जाय तो लोग क्षमा नहीं करते. प्रभु ने दो हाथ सत्कर्म करने के लिए दिए हैं. जो हाथ परमात्मा की सेवा नहीं करते और परोपकार में संलग्न नहीं रहते, वे मुर्दे के हाथ हैं. परोपकार और प्रभु सेवा में लगे हुए हाथ ही भाग्यशाली हैं. रोज रात को सोते समय अपने दोनों हाथों को पूँछ कर देखो, ‘ आज तुमने कोई सत्कर्म किया है?’ यदि हाथ ने सत्कर्म किया हो तो ही दूसरे दिन हाथ में खाने का ग्रास देना, नहीं तो उपवास करना. सत्कर्म किए बिना जो खाता है, वह पाप को ही खाता है.सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).