Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि परमात्मा व्यक्त भी अव्यक्त भी- मन-बुद्धि-इन्द्रियों से जिसका ज्ञान होता है, वह भगवान का व्यक्त रूप (सरकार) है, जो मन-बुद्धि-इन्द्रियों का विषय नहीं है, मन आदि जिसको नहीं जान सकते, वह भगवान का अव्यक्त रूप (निराकार) है। इसका तात्पर्य है कि भगवान व्यक्त रूप से भी हैं और अव्यक्त रूप से भी हैं।
सगुण-निर्गुण आदि एक ही परमात्मा के अलग-अलग विशेषण है। भगवान् कहते हैं सम्पूर्ण प्राणी मेरे में स्थित भी हैं और नहीं भी हैं। उसी प्रकार में भी सम्पूर्ण प्राणियों में हूं और नहीं भी हूं। जिस प्रकार तरंग की सत्ता मानी जाय तो तरंग में जल है और जल में तरंग है। जल को छोड़कर तरंग रह ही नहीं सकती। तरंग जल से ही पैदा होती है और जल में ही विलीन हो जाती है। परन्तु जब तरंग नहीं होती,तब भी जल होता है तरंग के होने न होने से जल पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
उसी प्रकार हम सब परमात्मा में हैं, परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं। परन्तु हम न रहें तो भी परमात्मा है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संसार में परमात्मा है और परमात्मा में संसार है। परमात्मा के सिवा संसार कुछ नहीं, हम कुछ नहीं। सब में परमात्मा हैं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।