Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मन से प्रभु के चरणों के समीप रहना ही सच्चा उपवास है. जीव का स्वभाव भी कैसा विचित्र है? उसे स्वयं के जीवन को सुधारने का विचार तो आता नहीं और दूसरों को समझदारी देने को बैठ जाता है. उसे स्वयं के दोष तो दिखाई देते नहीं और दूसरों के दोष को बड़ा रस लेकर देखता रहता है.भक्तों, तुम अपने दोष ही ढूँढ़ो, क्योंकि बिना उनके दूर हुए जीवन सुधरने वाला नहीं है. जिसे स्वयं के जीवन को सुधारने की इच्छा होती है, वह नम्र बनता है.
संतों को सहृदयता पूर्वक नमन करता है और अपने दोषों को देखता है.जिसे स्वयं के दोषों को देखने की आदत पड़ जाती है, उसके दोष कम होते हैं और जीवन गुणमय बन जाता है.सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).