Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान शंकर ने कहा- अब, मैं इस धर्मरथ पर बैठकर त्रिपुरासुर का बध करूंगा, लेकिन उससे पहले मेरी एक शर्त है कि सभी देवता पशु-भाव को प्राप्त हो जाएं और मैं सबका स्वामी बनूं, लोग मुझे पशुपति कहें, भगवान शंकर का एक नाम पशुपति भी है. ‘ पशु ‘ शब्द का अर्थ है जो बंधा हुआ हो. इन्सान भी कर्म की डोर से बंधा हुआ है.
जो बन्धन में है वह पशु है इसीलिए देवता भी एक बार स्वीकार कर लें कि वे बंधन में हैं,वे पराधीन हैं तभी हम त्रिपुरासुर तीनों भाइयों को समाप्त कर पूरे संसार में धर्म, न्याय और सत्य की स्थापना कर सकेंगे. देवता एक दूसरे का मुख देखने लगे कि हम पशु कैसे बनें? भगवान शंकर ने कहा- इससे तुम्हारा लाभ भी है. क्या लाभ है? शंकर भगवान बोले जब तुम पशु बनोगे, तब पशुत्व से मुक्ति के लिए हम एक व्रत बताएंगे, उसका पालन करने से हर जीव पशुत्व से मुक्त हो जाएगा. उसका नाम पाशुपत व्रत होगा.
बारह वर्ष तक नियम पूर्वक भगवान की आराधना बन जाए तो श्री शिवमहापुराण में उसी को पाशुपत कहा गया है जिससे आवागमन के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है.पाशुपत व्रत के समान ही एकादशी व्रत की भी विशिष्ट महिमा है. तिथियों में एकादशी भगवान को अत्यन्त प्रिय है. जो एकादशी का व्रत करते हैं वे भी भगवान के प्रिय बन जाते है. एकादशी का व्रत करने से जीवन में आने वाले दुःखों से छुटकारा मिल जाता है.
सभी पुराणों में भगवान व्यास ने एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन किया है और एकादशी की उत्पत्ति की कथा का भी वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).