चंद्रयान-2 ने फेल लैंडिंग में चंद्रमा की सतह के अंदर जलीय बर्फ की मौजूदगी का दिया सबूत

कर्नाटक। दो साल पहले चंद्रमा पर लैंडिंग करते समय संपर्क टूट जाने के कारण विफल घोषित कर दिए गए चंद्रयान-2 अभियान ने इस असफलता के बावजूद वैज्ञानिक समुदाय को ऐसा डाटा उपलब्ध कराया है, जिसे नई खोज की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। यह दावा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने किया है। इनमें चंद्रमा की सतह के अंदर जलीय बर्फ और बाहर ज्वालामुखी की मौजूदगी के सबूत भी शामिल हैं। इन दोनों खोज को बेहद अहम माना जा रहा है। इसरो का कहना है कि चंद्रयान-2 अंतरिक्षयान में लगे उपकरणों से हाल ही में जुड़े संपर्क से हासिल हुए डाटा ने इस अभियान को 98 फीसदी तक सफल साबित किया है। इतना ही नहीं यान का ऑर्बिटर अब भी काम कर रहा है और अगले पांच साल तक लगातार अहम डाटा भेजता रहेगा यानी अभी चंद्रयान-2 के जरिये चंद्रमा की सतह के बारे में जानने के कई मौके मिलेंगे। इस मौके पर 2021 का उद्घाटन किया गया, इस मौके पर इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने वैज्ञानिकों के उपयोग के लिए चंद्रयान-2 से हासिल हुए आंकड़े और विज्ञान दस्तावेजों को जारी किया। साथ ही उन्होंने चंद्रयान-2 के कक्ष पेलोड का डाटा भी जारी किया। ऑनलाइन माध्यम से आयोजित कार्यशाला में अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) में सचिव की भी भूमिका निभा रहे सिवन ने कहा कि चंद्रयान-2 में लगे उपकरणों से आए डाटा से कई दिलचस्प वैज्ञानिक निष्कर्ष निकले हैं। इन्हें साइंस जर्नल में प्रकाशित कराया जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय बैठकों में भी पेश किया जा रहा है। इसरो के मुताबिक चंद्रयान-2 में लगे मास स्पेक्ट्रोमीटर चेस-2 ने पहली बार एक ध्रुवीय कक्षीय मंच से चंद्रमा के बाहरी वातावरण की आवेशहीन संरचना का अध्ययन किया है। इस दौरान चंद्रमा के मध्य और उच्च अक्षांशों पर एरगॉन-40 की परिवर्तनशीलता से जुड़ी अहम जानकारी मिली है। साथ ही इसके आर्बिटर में लगे लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) उपकरण ने एक्स-रे स्पेक्ट्रम के जरिये चंद्रमा की सतह पर क्रोमियम और मैंगनीज जैसे मूल्यवान खनिजों की मौजूदगी के संकेत दिए हैं। इसरो ने कहा कि चंद्रयान-2 ने अपने इमेजिंग इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर उपकरण (आईआईआरएस) की मदद से पहली बार चंद्रमा की जलयोजन विशेषताओं का पता लगाया है। इस उपकरण ने चंद्रमा की सतह पर हाइड्रोक्सिल (ओएच) के साथ ही पानी (एच2ओ) की बर्फ की मौजूदगी के भी स्पष्ट संकेत दिए हैं। इससे पहले चंद्रयान-1 और नासा के क्लेमेंटाइन मिशन ने भी चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी के संकेत दिए थे, लेकिन वे पानी की प्रकृति को स्पष्ट नहीं कर पाए थे। डीएफएसएआर उपकरण ने ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्रमा की आकृति संबंधी विशेषताओं की सफल हाई रेजोल्यूशन मैपिंग की है। चंद्रयान-2 ने 100 किमी की दूरी से चंद्रमा की तस्वीरें ली हैं। इनमें चंद्र सतह पर पहाड़ों की आकृति और ज्वालामुखी के टीले स्पष्ट पहचाने गए हैं।

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