सुख प्राप्त करने की इच्छा छोड़ने वाला ही प्राप्त करता है परम सुख: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री भक्तमाल कथा ज्ञानयज्ञ भक्तमाल के रचयिता नाभा गोस्वामी जी का मंगलमय चरित्र। श्री नाभा गोस्वामी जी को ब्रह्मा जी का अवतार बताया गया है। कृष्णा अवतार में भगवान ब्रह्मा ने मोहवस नंद नंदन श्याम सुंदर भगवान श्रीकृष्ण के सखाओं और गोवत्सों को भगवान से एक वर्ष के लिए दूर कर दिये। मोह समाप्त होने के बाद सबको लौटा दिये। बड़ी लम्बी चौड़ी स्तुति भी किये, लेकिन भगवान ने उन्हें क्षमा नहीं किया। भगवान ने विचार किया कि यह बृजवासी वालक, ये गोवत्स बहुत थोड़े समय के लिए हमारा संग प्राप्त किये हैं। केवल ग्यारह वर्ष वावन दिन भगवान ब्रज में रहे। उसमें से भी इन भक्तों को एक वर्ष के लिए ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण से दूर कर दिया। तब ब्रह्माजी श्री नाभा गोस्वामी के रूप में अवतार ले करके भक्तमाल की रचना किये। भक्तों की सुंदर कथा की माला बनाकर प्रिया प्रियतम भगवान श्री राधा कृष्ण को अर्पित किए, तब भगवान उनसे बहुत प्रसन्न हुए।
जो भगवान से भक्तों को दूर करता है, उससे भगवान रुष्ट हो जाते हैं। सत्संग कथा कीर्तन के माध्यम से भगवान को भक्तों के समीप पहुंचाता है उस पर भगवान की अनंत करुणा कृपा होती है। नाभा गोस्वामी जी का अवतरण  महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में हुआ। यह परिवार राजस्थान में ही आकरके मेहंदीपुर बालाजी के समीप रहता था। उस परिवार का वंश श्री हनुमान जी महाराज की कृपा से ही चला। इसलिए नाभा गोस्वामी जी को हनुमान वंश में बताया गया है। प्रयाग से कुंभ मेला करके श्री अग्रदेवाचार्य जी महाराज पधार रहे थे और नाभा गोस्वामी जी बालक के रूप में मिले। गुरु की शरणागति, गुरु की कृपा प्राप्त करके, सद्गुरु के आदेश से उन्होंने बड़े होकर श्री भक्तमाल जी की रचना की। सत्संग के अमृत बिंदु-संसार के सुख और भजन का आनंद-विषयानंद छोड़ोगे तभी भजनानंद प्राप्त करोगे। प्रवृत्ति का विषयानंद छोड़ोगे, तभी निवृत्ति का नित्यानंद प्राप्त कर सकोगे। चाय न मिलने पर जिसका सिर दुखने लगता है, वह वेदांत को क्या समझेगा? जिसका चित्त संसार के सुखों में रचा-पचा है, वह ब्रह्मचिंतन में कहां से लगेगा? जिसको पान-सुपारी में ही रस आ रहा है, उसे हरि भक्ति में कहां से रस आयेगा? जिसके जीवन में संसार के सुखों की प्रधानता है, वह भगवान को न समझ कर, क्षुद्र जीवन जीता है। हम व्यसन के गुलाम बनने के लिए नहीं, परमात्मा के प्यारे बनने के लिए पैदा हुये हैं। लड़के का विवाह हो और बहू घर में आये तो वानप्रस्थी बनो। सुख प्राप्त करने की इच्छा छोड़ने वाला ही परम सुख प्राप्त करता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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