मन को सम्पूर्ण सात्विकता से प्रभु के समीप रखना ही है सच्‍चा उपवास : दिव्‍य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मन का उपवास- जगत विस्मृत हो जाए और मन प्रभु-स्मरण में जाए तो प्रभु के साथ भक्ति-सम्बन्ध बंध जाता है. उपवास का अर्थ है प्रभु के उप-समीप, वास-निवास करने की प्रक्रिया. जिस सत्कर्म से जीव प्रभु के समीप पहुंचे, उसका नाम उपवास है. जो मनुष्य सात्विक मन से प्रभु के स्मरण एवं चरणों में रहता है, उसका उपवास ही सच्चा है. बाकी तो स्वाद-लालसा को पोषण देने वाले स्वादिष्ट फलाहार खाकर किया गया उपवास सच्चे अर्थों में उपवास नहीं है, बल्कि प्रभु से दूर करने वाला उपवास है. केवल शरीर का उपवास इसमें काम नहीं आता.

मन का उपवास है – मन को किसी भी प्रकार की इन्द्रियवृत्ति एवं उसकी लोलुपता में फंसने से रोकना. मन का उपवास है – मन को सम्पूर्ण सात्विकता से प्रभु के समीप रखना. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

		

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