धूम्रपान न करने वालों में भी बढ़ रहा है फेफड़ों का कैंसर, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

Health: अक्सर यह कहा जाता है कि धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों के कैंसर का खतरा बेहद ज्यादा होता है. बात सोलह आने सच है, लेकिन जो लोग बीड़ी, सिगरेट नहीं पीते उनमें भी फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इसका खुलासा विश्व कैंसर दिवस के मौके पर अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसन में छपे एक नए अध्ययन में हुआ है.

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि कैंसर के इन बढ़ते मामलों के लिए वायु प्रदूषण भी जिम्मेवार हो सकता है. यह भी पता चला है कि भारत, चीन, थाइलैंड जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के लोग और खासकर महिलाएं इससे विशेष रूप से प्रभावित हो रही हैं.

फेफड़ों के कैंसर के दो प्रमुख कारण

1. धूम्रपान

धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा और सबसे ज्ञात कारण है. सिगरेट, बीड़ी, हुक्का या किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन फेफड़ों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है. धूम्रपान में मौजूद हानिकारक रसायन सीधे फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

2. प्रदूषित हवा में सांस लेना

दूसरा प्रमुख कारण है प्रदूषित या पोल्यूटेड हवा में सांस लेना. आधुनिक औद्योगिकीकरण, वाहनों का धुआं, फैक्ट्रियों से निकलने वाले रसायन और अन्य प्रदूषक हवा में मिलकर हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं.

सेकंड हैंड स्मोक से अधिक घातक

सेकंड हैंड स्मोक यानी परोक्ष रूप से धूम्रपान के धुएं का संपर्क कैंसर म्यूटेशन का उतना मजबूत कारण नहीं है, जितना वायु प्रदूषण है. शोध में पाया गया कि जो लोग स्वयं धूम्रपान नहीं करते थे लेकिन सेकंडहैंड स्मोक में रहते थे, उनके ट्यूमर में केवल हल्के बदलाव हुए. न ही उनमें कैंसर बढ़ाने वाला कोई खास जेनेटिक सिग्नेचर मिला.

हर्बल दवाएं भी घातक

शोध में सामने आया कि ताइवान में पारंपरिक चीनी औषधियों में इस्तेमाल होने वाला एरिस्टोलोचिक एसिड भी फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा हो सकता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन औषधियों का धुआं सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है और डीएनए को नुकसान पहुंचाता है.

भारत के लिए चेतावनी

अध्ययन भारत के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे नॉन-स्मोकर्स होते हुए भी हर दिन जानलेवा प्रदूषण में सांस ले रहे हैं. फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग नॉन-स्मोकर्स के लिए भी शुरू करने पर विचार किया जाना चाहिए.

वर्तमान स्थिति

बीस साल पहले, जब फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी की शुरुआत हुई थी, अधिकांश रोगी धूम्रपान करने वाले थे. लेकिन आज की स्थिति यह है कि:

  • 50% रोगी धूम्रपान करने वाले हैं
  • शेष 50% धूम्रपान न करने वाले हैं, लेकिन वे:
    • या तो प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं
    • या पैसिव स्मोकर हैं (यानी परिवार में कोई धूम्रपान करता है और वे उसका धुआं अनजाने में अंदर लेते हैं)
निष्कर्ष

फेफड़ों के कैंसर से बचाव के लिए दो प्रमुख उपाय हैं:

  • धूम्रपान से बचना और अगर करते हैं तो इसे छोड़ना
  • प्रदूषित वातावरण से जहां तक संभव हो, बचाव करना

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