गंगा-ब्रह्मपुत्र जलमार्गों पर बढ़ी कार्यों की रफ्तार, एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट करना होगा आसान

Mumbai: देश की नदियों के माध्यम से परिवहन को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की योजना अब जमीनी स्तर पर दिखाई देने लगी है. इसमें विशेष रुप से गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों पर आधारित जलमार्ग परियोजनाओं में निर्माण, ड्रेजिंग और माल ढुलाई संबंधी गतिविधियों में हाल के महीनों में कार्यों की रफ्तार बढ़ी है.

इस परियोजना में राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा) और जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र) के तहत कई महत्त्वपूर्ण कार्य प्रगति पर हैं. केंद्र सरकार की नीतियों के साथ अब निजी क्षेत्र की भागीदारी भी इस दिशा में रफ्तार पकड़ रही है. कुछ निजी कंपनियाँ, जो पहले वित्तीय कठिनाइयों से जूझ रही थीं, अब फिर से इस क्षेत्र में सक्रिय हो रही हैं.

निजी क्षेत्र की भागीदारी में इजाफा

सरकारी प्रयासों के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी में भी वृद्धि हो रही है. कुछ कंपनियां, जो पहले वित्तीय संकट से गुजर चुकी थीं, अब इस क्षेत्र में दोबारा कदम रख रही हैं. मुंबई की धरती ड्रेजिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (DDIL) इसका एक उदाहरण है. पुनर्गठन के बाद DDIL को फिर से गंगा और ब्रह्मपुत्र पर ड्रेजिंग के महत्वपूर्ण अनुबंध मिले हैं, जिनमें भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट और इनलैंड वॉटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया की योजनाएं शामिल हैं. कंपनी का अनुमान है कि वह वर्ष 2025–26 में 90 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित कर सकती है.

111 नदियां राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित

कंपनी के प्रबंध निदेशक डॉ. अमेय प्रताप सिंह के अनुसार, “हमारी वापसी सिर्फ कॉर्पोरेट पुनर्गठन नहीं, बल्कि एक बड़े बुनियादी ढांचे की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र के योगदान की मिसाल है. नीति विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही सरकार ने अब तक 111 नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया हो, लेकिन इनका वास्तविक उपयोग सीमित ही रहा है.

परियोजना कार्यान्वयन, पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ और बहु-एजेंसी समन्वय जैसे मुद्दे अब भी चुनौतियाँ बने हुए हैं. फिर भी, जिस तरह निजी कंपनियाँ दोबारा रुचि दिखा रही हैं और परियोजनाएं गति पकड़ रही हैं, वह संकेत देता है कि भारत का आंतरिक जल परिवहन तंत्र अब एक नए युग में प्रवेश कर सकता है.

क्या होगा फायदा?

अगर केंद्र सरकार की योजना के तहत ये प्रोजेक्ट पूरा होता है तो इसके कई फायदे हो सकते हैं. जैसे एक राज्य से दूसरे राज्य में सामानों को एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट करना आसान और किफायती हो जाएगा, जिसके लिए आज भी भारत ट्रक और ट्रेन पर निर्भर है.

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