कथा सुनने से भगवान के प्रति बढ़ जाता है आकर्षण: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री रुक्मणी मंगल कंस के उद्धार के बाद भगवान् मथुरा ही रह गये। नंदबाबा और ब्रजवासियों को भगवान ने वृंदावन वापस भेज दिया। भगवान ने नंद बाबा से कहा मेरे द्वारा कंस का उद्धार हुआ है, अर्थात् कंस मारा गया है। इस धरती पर कंस को चाहने वाले लोग भी बहुत हैं, वे सब हमें बड़े शांति से छोड़ देंगे ऐसी बात नहीं है। वे सब निश्चित हमसे युद्ध करेंगे। वृंदावन हमारी लीलाभूमि है उसको हम रक्त रंजित नहीं करना चाहते। इसलिए बाबा आप वृंदावन पधारें। मैं कुछ दिन मथुरा में ही रहूंगा। भगवान मथुरा ही रह गये। नंदबाबा वृंदावन बृजवासियों के साथ वापस चले गये। श्रीकृष्ण बलराम सांदीपनि मुनि के आश्रम उज्जैन में विद्याध्यन किये। तद् सुखे सुखेत्वं अपनी स्नेहास्पद के सुख में ही सुख का अनुभव करना, यही सच्चे स्नेही की पहचान है। अपने सुख के लिए किसी से स्नेह करना यह कपट युक्त स्नेह है। निष्कपट स्नेह है, उसमें किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं रहता है। केवल स्नेहास्पद के सुख के लिए ही नित्यप्रति यत्न प्रयत्न रहता है। वृजवासियों का भगवान् के प्रति जो प्रेम है- वह निष्काम, निष्कपट, निष्केवल, निश्चल प्रेम है। ऐसे प्रेमी को भगवान कभी भूल नहीं पाते हैं। ऐसा प्रेमी भगवान से स्नेह संसार की किसी वस्तु के लिए नहीं करता, लोक परलोक की कोई कामना से नहीं करता, ऐसा प्रेमी केवल भगवान की सेवा के लिए ही यत्न प्रयत्न करता रहता है और उसी में जीवन की सफलता का दर्शन करता है। जैसे इत्र बेचने वाले के शरीर से इत्र की सुगंध निकलती है, हींग बेचने वाले के वस्त्र से हींग की सुगंध निकलती है, उसी तरह भक्ति करने वाले के रोम-रोम से ईश्वर की भक्ति प्रकट होती है। जो समीप वाले भक्तों का भी मंगल करती है। शिशुपाल रुक्मी का मित्र था। इसलिए उसका आकर्षण शिशुपाल की तरफ था और श्रीरुकमणी देवी का आकर्षण भगवान की तरफ था, कारण देवर्षि नारद जी से भगवान की कथा सुनती थी। कथा सुनने से भगवान के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है। श्री रुक्मणी जी ने भगवान से विवाह का संकल्प कर लिया था। रुक्मी ने शिशुपाल से विवाह निश्चित कर दिया, रुकमणी जी को किसी से पता लग गया, वे बहुत दुःखी हुईं।महल में पूजा करने जो ब्राह्मण आते थे, उनके सामने रोने लगी। अपने ऊपर आये इस संकट के विषय में ब्राह्मण देवता को बताया। रुकमणी जी का पत्र सुदेव नामक ब्राह्मण ने भगवान को द्वारिका में ले जाकर दिया। भगवान् कुंडिनपुर पधारे। क्षत्रियों में शौर्य शुल्क स्वयंवर की परम्परा थी। द्वारिकाधीश भगवान् श्रीकृष्ण ने शिशुपाल के सहयोग में आए हुये आसुरी प्रवृत्ति के समस्त राजाओं को प्रास्त करके, श्रीरुकमणी देवी देवी के साथ विवाह रचाया छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में “श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव” के अंतर्गत पितृपक्ष के अवसर पर पाक्षिक भागवत के दसवें दिवस भगवान श्री कृष्ण और महारानी रुक्मणी के विवाह की कथा का गान किया गया, कल की कथा में भगवान की अन्य लीलाओं का गान किया जायेगा।

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