योग के निष्णात प्रवर्तक आचार्य है भगवान् शंकर: दिव्य मोरारी बापू

पुष्‍कर/राजस्‍थान। परम पूज्‍य संत श्री दिव्‍य मोरारी बापू ने कहा कि नवम् स्कंध में ईशानुकथा लीला का निरूपण किया गया है। नाम से ही स्पष्ट है, ईस हैं श्री कृष्ण, उनके अनु अर्थात् भक्तों की कथा नवम स्कंध में है। एक प्रकार से श्रीमद्भागवत महापुराण का नवम् स्कन्ध भक्त नामावली है और इस भक्त नामावली में सुमेरु भक्त शिरोमणि अम्बरीश हैं। श्री शुकदेव जी ने सुनाया कि अम्बरीष पर श्री दुर्वासा का कोप, श्री दुर्वासा जी का श्राप नहीं चला। राजा परीक्षित ने कहा गुरुदेव मेरे पर तो एक ब्राह्मण बालक का शाप लग गया, मिथ्या नहीं हो सका।

राजा अम्बरीष में ऐसी क्या विशेषता थी कि दुर्वासा जैसे महापुरुष का भी वहां प्रभाव नहीं पड़ा? भक्त शिरोमणि श्री अम्बरीश का स्मरण करके शुकदेव जी की भाव समाधि लग गयी, श्री अम्बरीश जी महान भक्त थे। श्री दुर्वासा जी के चरण सब पकड़ते हैं, डरते हैं। इन्द्रादिक देवता तक डरते हैं, लेकिन वही दुर्वासा राजा के चरण पकड़े, ये ज्ञान, कर्म के सामने भक्ति की विजय बतायी गयी। दुर्वासा जी के साथ बहुत विशेषण हैं श्री शिव पुराण के अनुसार श्री दुर्वासा जी भगवान् शंकर के अवतार है। अन्य शास्त्रों के अनुसार योग के निष्णात प्रवर्तक आचार्य हैं।

बहुत विशेषण है। महाराज अम्बरीष सूर्यवंशी राजा है, एक भक्ति का ही विशेषण है। श्री दुर्वासा जी हाथ जोड़े, झुके, महाराज अम्बरीष का चरण पकड़े, इससे महाराज अम्बरीष प्रसन्न हो गये, ऐसा नहीं, अपितु बड़े दुःखी हुए। श्री दुर्वासा जी के चरणों में गिर करके बड़ी प्रार्थना किए। महाराज हम क्षत्रिय हैं, हम गृहस्थ हैं, आप सन्यासी हैं, ब्राह्मण हैं, पाप क्यों लगाते हैं, हर परिस्थिति में वंदन हमको ही करना चाहिए। भगवान् श्री राम की कथा सुनाने में श्री शुकदेव जी कहते हैं- साक्षात् ब्रह्ममयो हरिःऔर श्रीकृष्णावतार की कथा में भी यही कहते हैं। कृष्णस्तु भगवान् स्वयं अर्थात् ये दोनों पूर्णावतार हैं। श्री शुकदेव जी कहते हैं

राजा परीक्षित- आपने बड़े-बड़े तत्वदर्शी संतो से भगवान् श्रीराम की कथा बारम्बार सुने हैं। पहले नियम था, राजा का दरबार लगता, तो पहले भगवान राम की कथा होती। इसका कारण था राजा, मंत्री, प्रजा, परिवार, समाज में रामराज्य की मर्यादा आवे। दशम स्कन्ध के प्रारम्भ में भगवान् श्रीकृष्ण के प्राकट्य की कथा एवं उत्सव महोत्सव का गान किया गया। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,  (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्करजिला-अजमेर (राजस्थान)।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *