क्या आप जानते हैं जगन्नाथ पुरी की यह चमत्कारी बात…

यात्रा। भारत के अनेक पर्यटन स्थलों में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी और आस-पास के पर्यटन स्थलों की यात्रा कर हम कह सकते हैं कि यह केवल एक धार्मिक यात्रा ही नहीं वरन मनोरंजन से भी भरपूर है। भुवनेश्वर से 60 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित पुरी भारत का ही नहीं, विश्व में एक धार्मिक नगरी होने का गौरव प्राप्त करता है। पुरी भारत के प्रमुख चार धामों में से एक है। यह शहर के समीप स्थित समुद्र इसके चरण पखारता है। इसे हजारों वर्षों से कई नामों यथा नीलगिरी, नीलांचल, नीलाद्रि, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, पुरूषोत्तम, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथपुरी के नाम से जाना जाता है। तो चलिए जानते है…

जगन्नाथ मन्दिर- आपको बता दें कि पुरी नामक स्थान पर जगन्नाथ जी का भव्य एवं प्राचीन कलात्मक मंदिर है। इस मंदिर के कारण ही पुरी को जगन्नाथपुरी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण कलिंग राजा अनन्तवर्मन ने कराया था तथा 1174 में अनंग भीमदेव ने इस जीर्णोद्धार किया था। मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ जी (श्रीकृष्ण का स्वरूप), बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी के साथ विराजमान हैं। मूर्तियां एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर स्थापित की गई हैं। भगवान जगन्नाथ जिस स्वरूप में विराजते हैं, ऐसा दुनिया भर के किसी मंदिर में नहीं देखा जाता है।

मंदिर वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख मंदिर है। मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट क्षेत्रफल में चारदीवारी से घिरा हुआ है। मंदिर भारत के भव्यतम स्मारकों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है, जो अष्टधातु का बना है, जिसे नीलचक्र भी कहा जाता है।

रथ यात्रा- प्रतिवर्ष मध्यकाल से मंदिर का प्रमुख उत्सव रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है, जो जगन्नाथ मंदिर का मुख्य उत्सव है और आषाढ़ शुल्क पक्ष की द्वितीया को रथ उत्सव के रूप में मनाय जाता है। उत्सव के दौरान पूरा शहर ही धार्मिक भावनाओं में उमड़ उठता है। जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की प्रतिमाएं सजा कर विशेष पूजा अर्चना कर रथों में आरूढ़ की जाती हैं और शहर में उनकी आकर्षक शोभा यात्रा निकाली जाती है। वर्ष में एक बार आयोजित यह उत्सव नौ दिन तक चलता है। इस उत्सव में देशी ही नहीं विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

महाप्रसाद- इस मंदिर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रसोई घर है। यहां 500 रसोईयें एवं 300 सहायक भगवान के लिए प्रसाद बनाते हैं। बताया जाता है कि यह भारत का सबसे बड़ा रसोईघर है। प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। महाप्रसाद को विशेष विधि से बनाया जाता है। यह प्रसाद केवल मिट्टी के बर्तन में बनता है। प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर बनता है तथा एक के ऊपर एक बर्तन रखे जाते हैं। प्रसाद बनते समय सबसे पहले ऊपर के बर्तन का प्रसाद पकता है। मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, लेकिन कभी भी प्रसाद न तो बचता है और न ही कम होता है।

लोकनाथ-साक्षी गोपाल- आपको बता दें कि पुरी में मुख्य मंदिर से एक किलोमीटर दूर लोकनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने इसे स्वयं यहां स्थापित किया था। इस मंदिर के साथ ही साक्षी गोपाल का एक औेर प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर का स्थापत्य और कला इसे 13वीं सदी के आस-पास बना होने का प्रमाण देता है।

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