समय, ईष्ट और मंत्र का बार-बार नहीं करना चाहिए परिवर्तन: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आध्यात्मिक साधना में नियम की महिमा-संसार साधन में तो नियमानुवर्तिता से लाभ होता ही है, परमार्थ में भी इससे बड़ा लाभ होता है। अपने जिस इष्टस्वरूप के ध्यान के लिए प्रतिदिन जिस स्थान पर, जिस आसन पर, जिस आसन से, जिस समय और जितने समय बैठा जाये उसमें किसी दिन भी व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। पाँच मिनट का भी नियमित ध्यान अनियमित अधिक समय के ध्यान से उत्तम है। आज दस मिनट बैठे, कल आधा घंटे बैठे, परसों बिल्कुल अवकाश कर दिया, इस प्रकार के साधन से साधक को सिद्धि कठिनता से मिलती है। जब पाँच मिनट का ध्यान नियम से होने लगे, तब दस मिनट का करे, परंतु दस मिनट का करने के बाद किसी दिन भी नव मिनट का नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार स्थान, आसन, समय, ईष्ट और मंत्र का बार-बार परिवर्तन नहीं करना चाहिए। इस तरह की नियमानुवर्ता से भी मन स्थिर होता है। नियमों का पालन खाने, पीने, पहनने, सोने और व्यवहार करने, सभी में होना चाहिए। नियम अपनी अवस्थानुकूल शास्त्र सम्मत वना लेना चाहिए। नेम वढ़ावत प्रेम को, प्रेम वढ़ावत नेम। जा घर नेम न प्रेम है वह घर कुशलक्षेम। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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