सत्कर्म से ही प्राप्त होती है सद्गति: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कथा का प्रसंग-श्री भक्तमाल के अनेक भक्तों के साथ-साथ भक्त शिरोमणि श्री चारभुजा नाथ के पुजारी देवा पंडा जी की मंगलमय कथा। श्री चारभुजा नाथ के पुजारी, भक्त शिरोमणि ‘श्री देवा पंडा जी’भगवान श्रीचतुर्भुजजी का दर्शन करने के लिए राणा जी आये,परंतु नित्य की अपेक्षा आज देर से आये। समय हो गया था, इसलिए पुजारी श्री देवा जी ने भगवान को शयन करा दिया और प्रसादी माला जो राणा जी को पहनाने के लिए रखी थी उसे उन्होंने अपने सिर पर धारण कर लिया। इतने में ही राणा जी आ रहे हैं, यह समाचार मिला। श्री देवा पंडा जी ने प्रसादी माला अपने सिर से उतार कर रख ली और राणा जी के आने पर उसे उनके गले में पहना दिया। संयोगवश पंडा जी के सिर का एक सफेद बाल माला में लिपटा चला गया। उसे देखकर राणा जी ने कहा- क्या ठाकुर जी के बाल सफेद हो गये हैं। पंडा जी के मुख से निकला- हां,(राणा जी ने कहा- मैं प्रातःकाल देखूँगा) पंडा जी हां- ऐसा कह तो गये परंतु अब वह बात उनसे सहन नहीं हो रही थी। वे घबड़ाये कि अब राणा जी मुझे दंड देंगे। क्योंकि मैंने झूठी बात कही है। उन्हें और कोई उपाय नहीं सूझा, वे भगवान के चरणों का ध्यान करने लगे।

उन्होंने प्रार्थना की कि-हे हृषिकेश भगवान! मेरे प्राणों की रक्षा के लिए कृपा करके आप अपने बालों को सफेद कर लीजिये। आप भक्त रक्षक हैं, परंतु मेरे मन में तो आपके प्रति नाम मात्र भी भक्ति नहीं है। चिंतामग्न श्री पंडा जी ने ठाकुर जी से कहा कि- मैंने सफेद बाल धारण कर लिए हैं, न मानो तो आकर देख लो। भगवान ने देवा पंडा जी के लिये सफेद बाल धारण कर लिया। सत्संग के अमृतबिंदु-मृत्यु को सुधारो मृत्यु का दिन ईश्वर को अपना हिसाब देने का दिन है। भक्ति से ही मृत्यु सुधरती है। समय का नाश सर्वनाश है। जीवन की समाप्ति पर ही सत्कर्म की समाप्ति होती है। मृत्यु निश्चित है। हमेशा मृत्यु की थोड़ी-थोड़ी तैयारी करते रहो। प्रभु के साथ प्रीति बाँधो, मृत्यु का डर नष्ट हो जायेगा। प्रभु का नाम-स्मरण, मरण को सुधारता है। मृत्यु के बाद तो केवल जीवन में किया गया प्रभु-स्मरण एवं सत्कर्म ही साथ जाता है। श्राद्ध-लड़के-लड़कियों पर मोह नहीं रखना चाहिए। विवेक-रूपी लड़का ही सद्गति दिलाता है।

हमें अपना उद्धार स्वयं करना है। सद्गति पुत्र से नहीं, सत्कर्म से प्राप्त होती है। शरीर को परोपकार एवं परमात्मा के काम में हवन करा देना ही सच्चा पिंडदान है। आप अपना श्राद्ध खुद ही करो। श्रद्धा पूर्वक किया गया सत्कर्म ही श्राद्ध है। सत्कर्म से ही सद्गति प्राप्त होती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में भक्त शिरोमणि श्री जयमल जी की कथा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।।

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