मन का पापों से है सहज स्नेह: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री विभीषण शरणागति पर सत्संग-जब किसी देवता के सामने जाओ तो एक चौपाई और दोहा बोल कर प्रणाम करो। प्रभु मैं पापी हूं। सहज पाप प्रिय तामस देहा। जथा उलूकहिं तम पर नेहा। हे नाथ, हे प्रभु! जैसे उल्लू का अंधकार से सहज स्नेह होता है, इसी तरह मेरे पापी मन का भी पापों से सहज स्नेह है। जैसे मछली पानी के बिना नहीं रहती, इसी तरह मेरा मन भी पापों से भरा है। उससे अलग नहीं रहता। लेकिन मैंने संतो से सुना है कि जो आपके चरणों में गिर जाये राघव, आप उसे वापस नहीं मोड़ते हो, उसको आप गले लगा लेते हो। श्रवन सुजसु सुनि आयउँ। मैंने सत्संग में आपका सुजस, आपका स्वभाव सुना है, क्योंकि विभीषण भी तो हनुमान जी से स्वभाव सुनकर आये हैं कि श्री  राम कितने दयालु हैं। मेरे जैसे वानर को भी गले लगाया, आप तो भजन करने वाले ब्राह्मण हो। ये सब सुनकर मैं आया हूं, तो मैंने सत्संग में सुना है कि प्रभु, आपकी जो शरण में आये, आप उनके भव बंधन काट देते हो। श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर। त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुवीर। त्राहि-त्राहि-त्राहि शब्द का अर्थ होता है रक्षा करो! रक्षा करो! हे दीनबंधु रक्षा करो। मुझे अपनी शरण में ले लो, ये त्राहि शब्द का अर्थ है। पाहि-पाहि या त्राहि-त्राहि। रक्षा, रक्षा, रक्षा करो नाथ! मैं जैसा भी हूं प्रभु आपका हूँ। आर्त त्राण परायण। शरण में आये हुये की रक्षा करना प्रभु का प्रण है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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