अध्यात्म के मंदिर में प्रवेश पा लेने से सभी भेद हो जाते है समाप्त : दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। उपवास का अर्थ केवल अपने शरीर को आहार नहीं देना यह नहीं होता है। उपवास का अर्थ है- उप माने समीप, वास माने बसना। आप सभी सत्य के समीप निरंतर रहने के लिए प्रयत्नशील हैं और जो इस प्रयास में लगा हुआ है वह उपवासी है।
श्री रामचरितमानस में गोस्वामी जी की लेखनी में सत्य रूप धर्म को सबसे श्रेष्ठ बताया है। श्रीमद्भागवत में धर्म को परिभाषित करते हुए भगवान् वेदव्यास जी ने कहा- भगवान् में जिसको प्रेम हो जाये बस वही मनुष्य का परम धर्म है। ईश्वर के प्रति प्रेम होना चाहिए और ईश्वर केवल मंदिर की मूर्ति में नहीं रहने वाला है। ईश्वर कहते हैं हम विश्व चेतना को। एक है व्यष्टि चेतना और एक है समष्टि चेतना। व्यष्टि चेतना को आप आत्मा कहते हैं और समष्टि चेतना को हम परमात्मा कहते हैं। उस परमात्मा के प्रति प्रेम करावे बस वही धर्म है।इसका मतलब यह है कि समष्टि चेतना के प्रति जिसके हृदय में अनुराग हो जाता है, प्रेम हो जाता है, वही आदमी सच्चा धार्मिक है। धर्म वह नहीं है जो तुम्हें बेहोश करे, धर्म वह है जो तुम्हें होश में ले आये, जो तुम्हें जागृत करे और जो होश में आ जाते हैं, जो जागृति में आ जाते हैं वे लोग ही समाज का कल्याण कर सकते हैं। धर्म की सच्ची सेवा कर सकते हैं और राष्ट्र का उत्थान कर सकते हैं। आज इस समय धर्म के नाम पर इंसान को कन्वर्ट करके मुसलमान या ईसाई बनाने की कोशिश की जा रही है। क्या ऐसा धर्म सही धर्म है जो इंसान को मुसलमान या ईसाई बनावे? ये सब अधार्मिक प्रवृतियां हैं। वास्तव में धर्म वह है जो एक मुसलमान को सच्चा इंसान बनावे, एक ईसाई को सच्चा इंसान बनावे, एक हिंदू को सच्चा इंसान बनावे। सच्चे इंसान के रूप में जो तुम्हें कन्वर्ट करे वही धर्म है। धर्म सीढ़ी है, चाहे बुद्धिज्म हो, चाहे जैनिज्म हो ये सब सीढ़ियां हैं। और जिस सीढ़ी का चयन करें आपका ध्येय होना चाहिए कि हमें अध्यात्म के मंदिर में प्रवेश करना है और एक बार जिसने अध्यात्म के मंदिर में प्रवेश पा लिया तो सारे भेद समाप्त हो जाते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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