Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ऋषि दर्शन-तिलेषु तैलं दधनी व सर्पिरापः स्रोतः स्वरणीषु चाग्निः। एवामात्मात्मनि गृह्यतेसौसत्येनैनं तपसा योनु पश्यति।। अर्थात जिस तरह तिलों में तेल, दही में घी, भूगर्भ स्रोत में जल और अरणी के काष्ठ में अग्नि (गुप्त रूप से रहने पर भी उचित प्रयत्न से इनका प्राकट्य होता है) वैसे ही परमात्मा अपने हृदय में छुपे हुए हैं। जो साधक सत्य और तप से युक्त होकर उनका चिंतन करता है, उसके द्वारा वे जाने जा सकते हैं।
परमात्मा सर्व व्यापक होने पर भी उनका दर्शन सबको क्यों नहीं होता है?प्रभु प्राप्ति किसको और कैसे हो सकती है? ऐसे दो महत्व के प्रश्नों के उत्तर इस एक ही मंत्र से स दृष्टान्त दिये जा रहे हैं। तिल के हर कण में तेल होता ही है, वैसे ही दही में घी, भूगर्भ के अंतराल आंतर जल प्रवाहों में जल और अरणी के काष्ठ में अग्नि अव्यक्त रूप से होती है, जो बाहरी नजर से दिखने में नहीं आते हैं, यदि तिल को पीसा जाये, दही को मथा जाय, पृथ्वी को खोदा जाय, और अरणि का मंथन किया जाय तो क्रमशः तेल, घी, जल और अग्नि की प्राप्ति हो जाती है। वैसे ही साधक अगर विषयों से विरक्त होकर इन्द्रिय संयम रूप तब करें और जीवन में सत्य को धारण करें तो ऐसे तपोपूत और सत्यपूत अन्तःरण द्वारा तत्व का चिन्तन करने से आत्म साक्षात्कार कर सकता है। सत्य अघैर तप पर तो उपनिषद बार-बार कहती है, जैसे कि-
सत्येन लभ्यः पतसा ह्योष आत्मा।। अर्थात् – यह आत्मा सत्य और तपके द्वारा मिस नि:संदेश प्राप्त किया जा सकता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।