Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि माया का सबसे आश्चर्यजनक चरित्र यह है कि इससे मन में कभी संतोष नहीं आता। मनुष्यों को संसार के प्रति मोहित करना ही उसका खेल है। माया व काल के चक्रव्यूह के कारण आत्मा (मनुष्य) धार्मिक दिखते हुए भी परमात्मा से दूर रहता है। सद्गुरु कृपा से उस चक्रव्यूह को तोड़ना ही साधन का उद्देश्य है।
संकल्प शक्ति की भावना मनुष्य को सांसारिक क्रियाकलापों की ओर ले जाती है वह ‘ मैं ‘ का अभिमान भी पैदा करती है। इसके विपरीत प्रभु को समर्पण की भावना में निष्क्रिय होने का भय रहता है। अभिमान रहित हो व प्रभु को समर्पण की भावना के साथ कर्मवीर होना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
जीवन तो आनन्द के लिए है। जितना आवश्यक है उतना ग्रहण करें, साधना करें, भक्ति की ओर अग्रसर हों। हम बाहर न देखकर अपने अंतर में दृष्टिपात करें, तो हम जीवन के गुण-दोष से परिचित हो सकेंगे।
बादल का मूल्य कब है? जब वह जल से भरा हो। उसी प्रकार जीवन तब उपयोगी माना जायेगा जब हम परमात्मा से जुड़े होंगे।
यदि हमें कांटा लगता है तो उसकी चुभन से बचने के लिये हम उसे निकालते हैं। उसी प्रकार संसार में रहकर विलास चुभे तो भक्ति की चिमटी से उसे निकाल फेंकेंगे, तो पीड़ा से बच जायेंगे।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।