Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि धर्म का रूप बड़ा सूक्ष्म है. इसलिये स्थूल बुद्धि से धर्म और धर्म का निर्णय हो भी नहीं सकता. धर्म अधर्म का निर्णय करने वाली बुद्धि भी सूक्ष्म होनी चाहिये और वह सूक्ष्म और पवित्र बुद्धि वाले संत पुरुष ही, युग पुरुष हैं. आपका धर्म क्या है? आपका कर्तव्य क्या है? वे आपको समझते हैं. होशपूर्वक किया हुआ युद्ध भी धर्म है और बेहोसी में किया हुआ धर्माचरण भी अधर्म रूप हो जाता है. युद्ध को जन्म देता है, धर्म के नाम पर हिंसा होती है, अत्याचार होता है, आतंकवाद फैलता है.
संतों का कहना है श्री रामचरितमानस पढ़ो या न पढ़ो. अपने घर में रख लो. सुबह स्नान करने के बाद रामायण जी की परिक्रमा कर लो. सप्तपुरी की परिक्रमा का फल आपको मिल जायेगा. सात पुरी सात काण्ड अयोध्या, माया, मथुरा, कांची, अवंतिका पुरी, द्वारिका सातों पुरी का फल आपको प्राप्त हो जायेगा.
श्री शरणानन्द जी महाराज से किसी ने पूछा कि साधु का लक्षण क्या है? उन्होंने उत्तर दिया जो हमेशा सावधान रहे वह साधु है.
जब प्रभु राम ने केवट को उतराई के रूप में माता सीता से मुद्रिका दिलानी चाही. केवट अश्रु पूरितनेत्रों से बोला, प्रभु मैं उतराई ही नहीं लूंगा. मैं गंगा का खिवैइया हूं और आप भवसागर के. आप जब वापस लौटेंगे तब प्रसाद रूप में लूंगा. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).