Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि रस कहां आता है? जहां मन अपने आप लगता है. यदि आपको गीता का पाठ करना हो तो उतना रस नहीं मिलता, रामायण में रस नहीं मिलता लेकिन उपन्यास पढ़ने लगो तो पूरा पढ़े बिना नहीं छोड़ेगे, क्योंकि मन उपन्यास पढ़ना चाहता है.
जिस वस्तु को मन चाहने लगता है, उसमें स्वाद की अनुभूति होती है और जहां मन को लगाना पड़ता है, वहां स्वाद नहीं आता. भगवान के भजन में लगाते-लगाते मन लगने लगेगा, कब लगने लगेगा? जब आप लगाते ही रहोगे. तब थोड़े समय के बाद वह लगने लगेगा. चलते-फिरते स्मरण करते रहो, कर्म अपने सुधारते रहो, अपने मन को कथा सुनाते रहो, कीर्तन करते रहो, समय आने पर अपने आप रस की अभिव्यक्ति होने लगेगी, मन लगने लगेगा.

आप भजन से उठाना चाहें और मन कहे कि थोड़ा और कर लो, यह प्रेमाभक्ति का लक्षण है लेकिन यदि मन कहे कि आज इतना ही काफी है, बाकी कल कर लेना. यह साधन भक्ति है. लेकिन साधन भक्ति को छोड़ना नहीं क्योंकि साधन भक्ति का ही फल प्रेमाभक्ति है.
पेड़ में फल और फूल कभी-कभी लगते हैं लेकिन माली बारह महीने सींचता है. अगर माली यह सोचने लगे कि जब फल लगेंगे या फूल लगेंगे, तब ही हम खाद पानी देंगे, फिर फल-फूल लगेंगे क्या? सब सूख जायेंगे.
फल जब लगेंगे, लगेंगे लेकिन खाद पानी हमें अभी से देना है और लगातार खाद पानी देते रहने से एक दिन फल और फूल लगेंगे. इसी तरह जीवन में आप जब भजन का संकल्प लेकर चल पड़ेंगे, चलते-चलते कभी न कभी आपको प्रेमाभक्ति की प्राप्ति हो जायेगी. प्रेमाभक्ति की प्राप्ति ही जीवन की सफलता है. यही जीवन का लक्ष्य है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).