MP: मध्य प्रदेश की धर्मनगरी उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर शिखर पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर है, जो कि साल में मात्र एक बार श्रावण शुक्ल पंचमी यानि कि नागपंचमी के दिन खुलता है. वह भी सिर्फ 24 घंटे के लिए. खास बात ये भी है कि ये मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है. हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है. हिंदू परंपरा में नागों को भगवान शिव का आभूषण भी माना गया है.
दुर्लभ प्रतिमा विराजित
मंदिर समिति का दावा है, हर श्रद्धालु को 40 मिनट में दर्शन का मौका मिलेगा. मंदिर में 11वीं सदी की नेपाल से लाई दुर्लभ प्रतिमा विराजित है. इसमें नागचंद्रेश्वर सात फनों से शिव-पार्वती को छाया दे रहे हैं. वहीं, वाहन नंदी-सिंह और भगवान गणेश कार्तिकेय, सूर्य और चंद्रमा अंकित हैं.
कब होंगे नागचंद्रेश्वर के दर्शन
महाकाल मंदिर में महंत विनीत गिरि ने बताया कि इस बार नाग पंचमी के अवसर पर नागचंद्रेश्वर के पट 29 जुलाई की रात 12 बजे खोले जाएंगे, जो 30 जुलाई की रात 12 बजे तक खुले रहेंगे. ऐसे में भक्त 24 घंटों तक भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर सकेंगे. माना जाता है कि जो भक्त इस मंदिर के दर्शन करता है, उसे कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है. यही कारण है कि मंदिर के खुलने पर भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ती है.
श्रद्धालुओं के लिए खास इंतजाम
चूंकि यह मंदिर सिर्फ एक दिन के लिए खुलता है, इसलिए हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए उज्जैन पहुंचते हैं. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मंदिर प्रशासन ने विशेष व्यवस्था की है. श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए ऐरो ब्रिज से होकर मंदिर के शीर्ष तल तक पहुंचाया जाएगा और उसी रास्ते से वापस भेजा जाएगा.
रोचक है मंदिर का इतिहास
माना जाता है कि मालवा साम्राज्य के परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के करीब इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसके बाद सिंधिया परिवार के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा को नेपाल से यहां लाकर स्थापित किया गया था. इस मूर्ति में भगवान शिव अपने दोनों पुत्रों गणेशजी और स्वामी कार्तिकेय समेत विराजमान हैं. मूर्ति में ऊपर की ओर सूर्य और चन्द्रमा भी है.
साल में एक बार ही क्यों खुलता है मंदिर?
मान्यता है कि शिव शंकर को मनाने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी. जिसके बाद तक्षक की तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया. मान्यता है कि उसके बाद से नागराज तक्षक ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन, महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न न हो. अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं. शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है.
इसे भी पढ़ें:-मनसा देवी मंदिर हादसे के पीड़ितों से मिले सीएम धामी, की आर्थिक सहायता देने की घोषणा