Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि विश्वास-विश्वास सबमें होता है. विश्वास को संसार में व्यक्त रूप से प्रकट नहीं किया जाता. वह तो सबके स्वभाव में होता है. दुनियां में कोई भी पक्की तरह से नहीं कह सकता है कि रात को हम सो जायेंगे और सुबह जाग जायेंगे. क्या पता रात को क्या हो जाये? लेकिन एक सहज विश्वास है व्यक्ति के जीवन में, कि सुबह उठ जायेंगे. इसी विश्वास पर जी रहा है मानव.
विश्वास की तीन आंखें हैं. ‘अज’ , ‘निज’ , और ‘सहज’. पहली आँख है ‘अज ‘ विश्वास कभी जन्म नहीं लेता वह अजन्मा है. अगर आप बोलेंगे कि विश्वास पैदा होगा तब भक्ति करेंगे तो जन्म जन्म चूक जायेंगे. विश्वास तो आपमें है. आपको इसे जन्म नहीं देना है. वह तो आप में निहित है. विश्वास को खोलना है.
विश्वास की दूसरी आंख है ‘निज’ . विश्वास की आंख आपकी निज की होनी चाहिये. विश्वास आपका स्वतः होना चाहिए. उधार का विश्वास काम नहीं करेगा. उधार का भरोसा कब तक आपका साथ देगा. आपका निजी विश्वास हो इसलिए भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बहुत सी बातें समझने के बाद कह देते हैं आप स्वतंत्र रूप से सोचो, आपके अनुभव में क्या आ रहा है? यदि आप निर्णायक न हो तो फिर आपके सद्गुरु कौन हैं? औरों की बात समझ लो, मान लो, लेकिन निजी चेतना हो.
आपका ‘ निजी ‘ विश्वास हो. विश्वास पराया नहीं होना चाहिए. जो पराया होता है वह विश्वास नहीं होता. विश्वास तो निज का होता है, अपना होना चाहिए. दुनियां में किसी को कहना नहीं पड़ता आपसे कि यह हाथ आपका है. यह तो निज विश्वास है कि यह हाथ मेरा अपना है.
विश्वास की तीसरी आंख है ‘ सहज ‘. विश्वास सहज हो कृत्रिम न हो. वैष्णव धर्म में तो लोग गिरिराज से पत्थर का टुकड़ा लाकर ऐसे सुन्दर भोजन का भोग लगाते हैं जैसे अपने बच्चों को भी नहीं खिलाते. ऐसा विश्वास सहज होना चाहिए.
तो सहज, निज और अज ये तीन आंखें हैं विश्वास की. ये तीनों शब्द भगवान शंकर को लग रहे हैं, ‘ भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).