Uttarakhand: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व और सतत प्रयासों से प्रदेश को भूस्खलन नयूनीकरण एवं प्रबंधन के लिए 125 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी देते हुए प्रथम चरण में 4.5 करोड़ रुपये जारी कर दिए. उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाओं पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से यह मंजूरी दी गई है.
अधिकारियों ने बताया कि इस महत्वपूर्ण परियोजना के जरिए राज्य के चिन्हित सर्वाधिक अतिसंवेदनशील भूस्खलन क्षेत्रों में दीर्घकालिक उपाय किए जाएंगे. वहीं उन्होंने बताया कि साढ़े चार करोड़ रुपये की अग्रिम धनराशि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए जारी की गई है.
राज्य सरकार ने केंद्र को भेजा था प्रस्ताव
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केन्द्र ने इस संबंध में प्रस्तावों को तैयार कर केंद्र को भेजा था, जिस पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं गृह मंत्रालय ने कार्रवाई करते हुए 125 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी प्रदान की. अधिकारियों ने बताया कि प्रथम चरण में 4.5 करोड़ रुपये की अग्रिम धनराशि अन्वेषण कार्यों एवं विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए जारी की गयी है. उन्होंने कहा इस महत्वपूर्ण परियोजना के जरिए राज्य के चिन्हित और अतिसंवेदनशील भूस्खलन क्षेत्रों में दीर्घकालिक उपाय किए जाएंगे.
प्राथमिकता के आधार पर चिन्हित पाँच संवेदनशील स्थल
मनसा देवी हिल बाईपास रोड, हरिद्वार
हरिद्वार की मनसा देवी पहाड़ी पर हो रहे लगातार भू-स्खलन से जनसुरक्षा को खतरा है. यह मार्ग कांवड़ यात्रा के दौरान वैकल्पिक रूट के तौर पर इस्तेमाल होता है. 50,000 से अधिक स्थानीय लोग प्रभावित हैं.
गलोगी जलविद्युत परियोजना मार्ग, मसूरी (देहरादून)
देहरादून-मसूरी मार्ग पर स्थित यह क्षेत्र बरसात के मौसम में बार-बार भू-स्खलन से प्रभावित होता है, जिससे यातायात बाधित और सड़क को नुकसान होता है.
बहुगुणा नगर भू-धंसाव क्षेत्र, कर्णप्रयाग (चमोली)
इस क्षेत्र में जमीन धंसने की गंभीर घटनाओं से मकान और सड़कें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. यह भूसंरचना की दृष्टि से अत्यधिक अस्थिर क्षेत्र है.
चार्टन लॉज भूस्खलन क्षेत्र, नैनीताल
सितंबर 2023 में हुए भारी भूस्खलन से दर्जनों घर प्रभावित हुए और कई परिवारों को अस्थायी रूप से विस्थापित होना पड़ा. जल निकासी की कमी और भारी बारिश इसके मुख्य कारण रहे.
खोतिला-घटधार क्षेत्र, धारचूला (पिथौरागढ़)
भारत-नेपाल सीमा से सटा यह इलाका अत्यधिक वर्षा और भू-कटाव के कारण गंभीर भू-क्षरण की चपेट में है, जिससे सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है.
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