Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आलस्य खतरनाक है- जो साधक प्रतिदिन अपने कर्तव्यों की समीक्षा नहीं करता, उसके जीवन में जड़ता का कीचड़ जमा हो जाता है. विचारों में रूढ़ता और आग्रह इस तरह हावी हो जाता है कि सत्य को जानने की जिज्ञासा ही मृतप्राय हो जाती है.
रात्रि में सोने के पहले एवं सवेरे उठने के बाद आत्मचिंतन करता हुआ मानव प्रमाद के मकड़जाल में नहीं फंसता. चिंतन के क्षणों में उसके सामने यह विचार रहते हैं कि मैंने क्या किया है? मेरे लिये क्या करना अवशेष है और कौन सा काम है जिसे मैं कर सकता हूं पर नहीं कर रहा हूं. बार-बार अपने से इन प्रश्नों को पूंछने वाला और अपने से समाधान लेने वाला विषमय जगत में उलझता नहीं, आलस्य का नशा उसे घेरता नहीं.
नशे तीन तरह के हैं- संसार के पद पदार्थों को देखकर प्रतिस्पर्धा का नशा है, जो देखने वाले पर चढ़ता है. मदिरा का नशा, पीने वाले पर चढ़ता है और धन का नशा संग्रह करने पर चढ़ता है. ये तीनों नशे इतने शक्तिशाली है कि अच्छे से अच्छे लोग भी इसकी पकड़ से मुक्त नहीं मिलते. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).