गोरखपुर। जीडीए की स्थापना (1983) से अभी तक 37 साल सात महीने के सफर में 46 वीसी (उपाध्यक्ष) आए और चले गए। पांच महीने पहले आए वीसी आशीष कुमार का मंगलवार को हुआ तबादला इस सिलसिले की सबसे ताजी कड़ी है। आखिर इससे फर्क क्या पड़ता है तो जवाब यह है कि शहर का सुनियोजित विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है। वीसी आए, शहर और शहर की जरूरतों को समझते, इससे पहले ही विदाई, तो खाक कोई काम होगा। इस क्रम में डीके कोटिया अकेले ऐसे वीसी रहे, जिन्हें चार साल (27 मई 1986 से 29 मई 1990) तक इस ओहदे पर काम करने का मौका मिला। उनके अलावा तीन साल का भी कार्यकाल कोई उपाध्यक्ष नहीं पूरा कर पाया। यही नहीं दो साल (21 मई 2002 से एक जुलाई 2004) तक का समय भी सिर्फ पूर्व उपाध्यक्ष रामसजीवन ही बिता पाए। आईएएस आशीष कुमार के महज पांच महीने 11 दिन में ही जीडीए उपाध्यक्ष के पद से स्थानान्तरण की वजह तलाशने के दौरान यह आंकड़े सामने आए। आशीष कुमार को सहारनपुर विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया है, जबकि यहां प्रेम रंजन सिंह को जीडीए उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। आमजन ही नहीं, इतने कम समय में उनके तबादले को लेकर प्राधिकरण के भी सभी अफसर, कर्मचारी हतप्रभ हैं। प्राधिकरण के वजूद में आने के बाद से अब तक दर्जन भर तो ऐसे उपाध्यक्ष रहे, जो ठीक से जीडीए की सीमा ही समझ पाते कि उनकी विदाई हो गई। कोई एक महीने में उपाध्यक्ष की कुर्सी से हटा तो कोई पांच महीने के भीतर। साढ़े तीन दशक के बाद भी शहर का सुनियोजित विकास नहीं हो पाने के पीछे एक बड़ी वजह आला अफसरों का जल्द चले जाना भी है बताया जा रहा है। प्राधिकरण की खुद की कॉलोनियों में सड़क, बिजली, पानी और जलभराव की समस्याएं बरकरार हैं। कई कॉलोनियों की इमारतों की छतें तो निर्माण के साल भीतर ही चूने लगी तो वहीं दीवारों पर सीलन आम शिकायत है।