दूसरे को सुखी देखकर जलन पैदा करने वाली वृत्ति का हाेगा नाश: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। सभी लोग जानते हैं और संत जन इस बात के साक्षी हैं कि कलियुग में केवल प्रेम से ही भगवान प्रकट होते हैं, अतः प्रेम ही प्रधान है। (हरिप्राप्ति के साधन साध्यों में अन्य ज्ञानादि गौण हैं) भक्तों का दास कुल शेखर नामका एक राजा था। उसने रामायण की कथा में रावण द्वारा सीता जी का हरण सुना। सुनते ही उसे आवेश आ गया और वह तुरंत हाथ में तलवार लेकर घोड़े पर चढ़कर ‘मारो-मारो’ चिल्लाता हुआ दौड़ा और घोड़े को समुद्र में कुदा दिया। (इस प्रेम को देखकर प्रभु श्री राम ने सीता समेत उसे दर्शन देकर समुद्र से निकाला) दूसरे एक प्रेमी भक्त ने नृसिंह लीला के अनुकरण में नृसिंह बनकर हिरण्यकशिपु बने हुए व्यक्ति को सचमुच मार डाला , पुनः रामलीला में उसी भक्त ने दशरथ बनकर राम जी के वियोग में अपने शरीर को त्याग दिया। श्री रतिवन्ती बाई ने श्री भागवत में कथा में सुना कि-माता यशोदा ने रस्सी से श्री कृष्ण को बाँध दिया। सुनते ही अपने प्राण त्याग दिये। इन भक्ति चरित्रों से कलियुग में प्रेम की प्रधानता प्रगट एवं सिद्ध हुई।

सत्संग के अमृतबिंदु- सुखी मनुष्य से प्रेम, दुखियों के प्रति दया, पुण्यत्माओं के प्रति प्रसन्नता और पापियों के प्रति उदासीनता की भावना से चित्त प्रसन्न होता है। सुखी मनुष्य से प्रेम-जगत के सारे सुखी जीवों के साथ प्रेम करने से चित्त का ईर्ष्या मलदूर होता है; डाह की आग बुझ जाती है। संसार में लोग अपने को और अपने आत्मीय स्वजनों को सुखी देखकर प्रसन्न होते हैं क्योंकि वे उन लोगों को अपने प्राणों के समान प्रिय समझते हैं। यदि यही प्रिय भाव सारे संसार के सुखियों के प्रति अर्पित किया जाये तो कितने आनंद का कारण हो। दूसरे को सुखी देखकर जलन पैदा करने वाली वृत्ति का नाश हो जाये। परम पूज्य श्री संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में भक्त शिरोमणि, भक्त भूप,भक्त प्रवर, भक्तिमति श्री मीराबाई जी की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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