आंख को नहीं देख सकती आंख: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। श्री भक्तमाल कथा ज्ञानयज्ञ
महामहोत्सव (अट्ठाईसवां-दिवस) सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय, (भव्य-सत्संग) सानिध्य-परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज (पुष्कर-गोवर्धन) कथा वक्ता-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू। कथा स्थल-श्री हनुमान मंदिर, टंकी के पास, जवाहर नगर, हाउसिंग बोर्ड, बूंदी। कथा का समय-दोपहर 2:00 बजे से सायंकाल 6:00 बजे तक। कथा का प्रसंग-श्री नरसी जी की हुंडी की कथा ।।श्री नरसी जी की हुंडी।। श्री नरसी जी की हुंडी चुकाने के लिए स्वयं द्वारिकाधीश भगवान सेठ का रूप धारण कर कंधे पर रुपयों की थैली रखकर संतों के निकट पधारे और बोले- श्री नरसी जी की हुंडी किसके पास है? जिसके पास हो वह आकर अपने रूपये गिन कर ले ले। संतो ने कहा- अजी सेठ जी! आप बहुत अच्छे आये। हम लोग आपको बाजार में ढूंढ-ढूंढ कर हार गये, पर आप नहीं मिले।साँवलशाह बोले- आप को रुपये देने में इतना विलम्ब हुआ। अतः हमें भी लज्जा लग रही है। विलम्ब का कारण यह है कि- मैं बाजार में नहीं मिलता हूं। मेरा निवास एकान्त में है और इस बात को कोई-कोई भगवान के भक्त ही जानते हैं। ये लीजिये अपने रुपये और उनसे अपना कार्य कीजिये। यह कहकर भगवान ने हुंडी लेकर रुपये दे दिये और उसके उत्तर में चिट्ठी लिखी कि- मेरे पास रुपयों की कमी नहीं है, आप बार-बार हुंडी लिखकर भेजा करें। संतजन द्वारिका पुरी का दर्शन करके लौटे और नरसी जी को साँवलशाह की चिट्ठी दी। उसे पाकर श्री नरसी जी प्रेमानंद में डूब गये और उन्होंने संतो को गले से लगा लिया। सत्संग के अमृतबिंदु-
मन के दृष्टा बनो! मन के कार्यों को देखना- मन को वश में करने का एक बड़ा उत्तम साधन है। मन से अलग होकर निरंतर मन के कार्यों को देखते रहना। जब तक हम मन के साथ मिले हुए हैं तभी तक मन में इतनी चंचलता है। जिस समय हम मन के दृष्टा बन जाते हैं उसी समय मन की चंचलता मिट जाती है। वास्तव में तो मन से हम सर्वथा भिन्न ही हैं। किसी समय मन में क्या संकल्प होता है, इसका पूरा पता हमें रहता है। मुंबई में बैठे हुए एक मनुष्य के मन में कोलकाता के किसी दृश्य का संकल्प होता है, इस बात को वह अच्छी तरह जानता है। यह निर्विवाद बात है कि जानने या देखने वाला जानने की या देखने की वस्तु से सदा अलग होता है। आंख को आंख नहीं देख सकती। इस न्याय से मन की बातों को जो जानता या देखता है वह मन से सर्वथा भिन्न है, भिन्न होते हुए भी वह अपने को मन के साथ मिला लेता है, इसी से उनका जोर पाकर मन की उद्दंडता बढ़ जाती है। यदि साधक अपने को निरंतर अलग रखकर मन की क्रियाओं का दृष्टा बनकर देखने का अभ्यास करे तो मन बहुत ही शीघ्र संकल्प रहित हो सकता है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में श्री नरसी जी के पुत्र शामलदास और पुत्री कुंवरिबाई के विवाह की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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