ॐ शब्द सुनने से समाधि को प्राप्त होता है साधक: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि इस कराल-कलिकाल में पयहारी श्रीकृष्णदासजी वैराग्य की सीमा हुए। आपने अन्न को त्यागकर केवल दुग्धपान करके भजन किया। इसीलिए आप पयहारी इस नाम से विशेष प्रसिद्ध हुए। आपने जिसके सिर पर अपना हाथ रखा-अर्थात् शिष्य करके अपनाया, उसके हाथ के नीचे अपना हाथ कभी नहीं फैलाया- अर्थात् उससे याचना नहीं की। वरन् उसे भगवत्पद मोक्ष का अधिकारी बना दिया और सांसारिक शोक-मोह से सदा के लिए छुड़ाकर अभय कर दिया। श्री पयहारी जी भक्तिमय तेज के समूह थे और आप में अपार भजन का बल था। बाल ब्रह्मचारी योगी होने के कारण आप ऊद्धर्वरेता हो गए थे। भारतवर्ष के छोटे-बड़े जितने राजा-महाराजा थे वे सभी आपके चरणों की सेवा करते थे। दधीचिवंशी ब्राह्मणों के वंश में उदय (उत्पन्न) होकर आपने भक्ति-प्रताप से भक्तों के हृदय कमलों को सुख दिया। योग में नाभिचक्र का महत्व नित्य नियमपूर्वक पद्मासन या सुखासन से बैठकर सीधा बैठकर नाभि में दृष्टि जमा कर जब तक पलक न पड़े तब तक एक मन से देखते रहना चाहिए। ऐसा करने से शीघ्र ही मन स्थिर होता है। इसी प्रकार नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर बैठने से भी चित्त निश्चल हो जाता है। इससे ज्योति के दर्शन भी होते हैं।कानों में उंगली देकर शब्द सुनने का अभ्यास किया जाता है। इसमें पहले भंवरों के गुंजार अथवा प्रातःकालीन पक्षियों के चुंचुंहाने जैसा शब्द सुनाई देता है, फिर क्रमश: घुंघरू, शंख, घंटा, नाल, मुरली, भेरी, मृदंग और सिंह गर्जना के सदृश्य शब्द सुनाई देते हैं। इस प्रकार दस प्रकार के शब्द सुनाई देने लगे लगने के बाद दिव्य ऊँ शब्द का श्रवण होता है, जिससे साधक समाधि को प्राप्त हो जाता है। यह भी मन के निश्चल करने का उत्तम साधन है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल भक्त शिरोमणि, भक्तभू भक्तप्रवर श्री करमैती जी की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल काम। श्री दिव्य घनश्याम धाम श्री गोवर्धन धाम कालोनीदा नघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश)।श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्पक जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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