मनुष्य शरीर भगवान की करुणा का है फल: दिव्य मोरारी बापू

श्रवण भक्ति से जाग्रत होता है प्रभु का प्रेम: दिव्य मोरारी बापू
पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि
मनुष्य शरीर हमारे आपके कर्मों का फल नहीं है, मनुष्य शरीर भगवान की करुणा कृपा का फल है। कबहुक करि करुणा नर देही। देत ईश बिनु हेतु स्नेही। नहीं तो चौरासी लक्ष शरीर में, कीट पतंगे की शरीर में, कौन ऐसा कर्म हम लोगों ने किया, जिससे हमें मनुष्य शरीर मिला, दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुरः। तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठ प्रिय दर्शनं। अग्र स्वामी जी कहते हैं, अगर भजन आतुर करो जौ लो या घट स्वांस। नदी किनारे रूखड़ा जब तब होय विनास। भजन लापरवाही से नहीं ठीक कर लेंगे नहीं भी हुआ तो क्या ऐसा नहीं व्याकुलता के साथ करो मृत्यु का रहस्य पता लग जाए तो भजन में मदद मिलती है
 निश्चिंत होकर नहीं करना भगवान के भजन के लिए तीन बातें आवश्यक है, 1- सम्बन्ध- भगवान से कोई अपना सम्बन्ध स्वीकार कर लें। जैसे कन्या विवाह के समय सम्बन्ध को स्वीकार करती है। और करने के साथ ही जिस घर में जन्म हुआ वह छूट जाता है। पति का घर ही उसका हो जाता है, पति के गोत्र से गोत्रित हो जाती है। जहां जन्म हुआ वह गोत्र भी नहीं रह जाता, कई बार माता-पिता के यहां आने के बाद भी चिंता बनी रहती है हमें अपने घर जाना होगा, क्या ये घर तुम्हारा नहीं है? तो कन्या कहती है कि  है तो लेकिन मुख्य पति का घर ही हमारा है। भक्त भगवान से सम्बन्ध जोड़ लेता है तो भगवान् को ही मुख्य मानता है और सारे कार्य परमात्मा की प्रसन्नता के लिए करता है। 2- भगवान के लिए ही भजन करना चाहिए। 3- भगवान का ही भजन करना चाहिए। भगवान के लिए भी दूसरे का भजन नहीं करना है। जय श्री सीताराम।

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