दशधा भक्ति से मिलती है शांति‍: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। श्री खेमालरत्न जी राठौर वंशी क्षत्रिय थे, आपके घर में भक्ति ने आंचल होकर निवास किया। आपके सुपुत्र श्री रामरयन जी श्रेष्ठ गुणों से युक्त थे और श्री राम जी के भजन में सदा तत्पर रहते थे। आप परम प्रसिद्ध भगवान के भक्त थे, श्री खेमाल जी के पुत्र श्री राम राम जी के पौत्र श्री किशोर सिंह जी भगवत् प्रेमियों से प्रेम करने वाले थे। समुद्र के समान गंभीर हृदयवाले, सद्गुण-रत्नों के निधान थे। ये सभी भगवद्दासों के दास थे। प्रेम की उच्च अवस्था को प्राप्त एवं उसकी ध्वजा को इन्होंने सर्वदा ऊंची रखा। ये निर्भय, अनन्य, परमउदार और रसिक थे। रसिक श्री श्याम सुंदर के विशाल सुयश को आप जिह्वा से सदा गाते रहते थे। दशधा भक्ति को ही आप अपनी परम संपत्ति मानते थे। संतों का बल आपमें था। ये सदा प्रेम विभोर अतः प्रसन्न मुख नमक रहते थे।

सत्संग के अमृतबिंदु- पापियों के प्रति उपेक्षा करने से चित्त का क्रोध रूप मल नष्ट होता है। पापों का चिंतन न होने से उनके संस्कार अंतःकरण पर नहीं पड़ते। किसी से भी घृणा नहीं होती। इससे चित्त शांत रहता है। इस प्रकार के भावों का बारंबार अनुशीलन से चित्त की राजस, तामस वृत्तियां नष्ट होकर सात्विक वृत्ति का उदय होता है। और उससे चित्त प्रसन्न होकर शीघ्र ही एकाग्रता लाभ कर सकता है। ग्रंथों का पठन-पाठन- भगवान के परम रहस्य संबंधी परमार्थ ग्रंथों के पठन-पाठन से भी चित्त स्थिर होता है। एकांत में बैठकर उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत, रामायण आदि ग्रंथों का अर्थ सहित अनुशीलन करने से वृत्तियां तदाकार बन जाती हैं। इससे मन स्थिर हो जाता है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में भक्त श्री चतुर्भुज जी की कथा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, ( उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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